tag:blogger.com,1999:blog-56311364912866559662024-03-04T20:18:24.530-08:00पुलियाइस पर ही बैठ कर ...कालेज की पढ़ाई से लेकर साहित्यिक लड़ाई तक , सारी गंभीर चर्चा ...और राष्ट्रीय मुद्दो से अंतराष्ट्रीय हदों तक , बातों में समय खर्चा हुआ...
हम फिर बैठे है पुलिया पे
शायद कुछ हुलिया बदल जाए..Unknownnoreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-3125699557171280332014-06-17T09:06:00.000-07:002014-06-17T09:06:22.977-07:00पिताजी का जाना<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEgTs0bBOfyRZBwmZXDgRw1R_dBF8BDePNU1HC-XUAqtNPYYnq-6vzjteBjQD0ZpnndmO0VMKvKh-7p9T6e9Mt-YnNpqUgD4BSRJV9tMQbdK-E4sqBZfzfRI3gQrhqt7P8T-349dC6FnM/s1600/10447037_10152070797301604_2032724194941597590_n.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEgTs0bBOfyRZBwmZXDgRw1R_dBF8BDePNU1HC-XUAqtNPYYnq-6vzjteBjQD0ZpnndmO0VMKvKh-7p9T6e9Mt-YnNpqUgD4BSRJV9tMQbdK-E4sqBZfzfRI3gQrhqt7P8T-349dC6FnM/s320/10447037_10152070797301604_2032724194941597590_n.jpg" /></a>
हम लोग उन्हे पिताजी क्यों कहते थे, पता नहीं ? यह एक सम्बोधन था जो चल पड़ा था। धीरे – धीरे श्री हरिनारायण अवस्थी हम सभी के लिए पिताजी हो गए। मैं जब उनसे पहली बार मिला , करीब आठ साल पहले तब वे 80 बंसत पार कर चुके थे। कान में सुनने की मशीन लगी थी, फिर भी उनसे बात करने के लिए जोर से बोलना पड़ता था। ठहाका लगाकर वे कहते , मैं फायदे में ही रहता हूं, सुनना कम पड़ता है और जितना मर्जी बोलता रहता हूं।
पिताजी कोई साहित्यकार नहीं थे , दार्शनिक भी नहीं, समाज सेवक या आंदोलनकारी तो बिल्कुल भी नहीं । ऐसा कोई भी संबोधन उन्हे सीमित करता था। वे सिर्फ पिताजी थे। हर दौर में समाज को पिताजी जैसे बुजुर्ग की जरूरत होती है जिनके पास कोई पद नहीं होता , लेकिन उनका होना ही समाज के होने का आधार होता है। हलांकि वे उत्तर प्रदेश सरकार में पीसीएस अधिकारी रहे थे। इस रूतबे का गुमान उन्हे छू भी नहीं पाता था। अपने अफसरी के दिनों को कुछ यूं बयां करते, ‘नियम लागू करवाने वाले को कविताएं जरुर पड़नी चाहिए, तभी वह पहले और आखिरी आदमी को समझ सकता है।‘
साहित्य के बारे में कहते कि पहली बार पढ़ने पर किसी किताब से सिर्फ परिचय हो पाता है , समझ आती है दूसरी बार पढ़ने पर और तीसरी बार पढ़ने पर ही उससे दोस्ती हो पाती है, इसके बाद आप पर है कि दोस्ती कितनी घनिष्ठ करना चाहते हो। पिताजी के पास साहित्य को देखने की अलग ही नजर थी। जिस भी किताब को पढ़ते , उसके हर पन्ने पर अपना मत लिखते जाते। उसके बाद लेखक को पोस्टकार्ड लिखते। धन्य हो जाते होंगे वे लेखक जिन्हे इतने सुधी पाठक का पत्र मिलता होगा। पिताजी ने मोबाइल कभी रखा नहीं , कहते इससे खुशबू का संचार नहीं हो सकता, वह तो चिट्ठी से ही संभव है। भावनाएं एसएमएस से व्यक्त नहीं हो सकती। हमारी हमेशा कोशिश रही कि वे यह ना जान पाए कि अब लोग शादी का निमंत्रण भी फेसबुक से भेज देते हैं। एक ही मोहल्ले में रहते हुए जब तब उनके पोस्टकार्ड मुझे बताते रहे कि वे कितने सक्रिय है और मैं कितना निष्क्रिय।
एक दिन मुलाकात के दौरान उन्होने पूछा, आजकल क्या पढ़ रहे हो? मेरे यह कहने पर कि शेखर एक जीवनी को समझने की कोशिश कर रहा हूं। कुछ देर चुप्पी के बाद उन्होने कहा, ‘ अब लगता है कि वह साहित्य नहीं हैं, भारतीयता को और उसके दर्शन को समझना है तो उपनिषदों को पढ़ना चाहिए। मुझे लगा शायद उम्र का तकाजा है जो पिताजी ऐसी बाते कर रहे है। मुझे असमंजस में देख उन्होने शेखर एक जीवनी का एक कथन सुनाया, ‘ मां तुम मर क्यों नहीं जाती । ’फिर बोले, अब बताओं यह किस समाज का आईना दिखाता साहित्य है। वास्तव में पिताजी को दुख इस बात का था कि उन्होने काफी देर से उपनिषदों की तरफ ध्यान दिया, वे जानते थे कि उनके पास ज्यादा समय नहीं है। उनके भीतर हमेशा से जीने की नहीं, जानने की ललक दिखी। विश्व पुस्तक मेले में वे रोज जाना चाहते लेकिन समस्या यह होती कि उन्हे रोज कैसे लेकर जाया जाए, उनका स्वास्थ्य इसकी अनुमति नहीं देता था। पिताजी जब भी मिलते अपनी किताबों का तकादा जरूर करते, मेरी वह किताब वापस करो, अब इस उम्र में मैं फिर से पढ़कर निशान नहीं लगा सकता। तुलसीदास की मानस उनकी पसंदीदा कृति थी, पति - पत्नी के आपसी संबंध को वे अक्सर सेवक स्वामी सखा सिय पी के, गाकर समझाते और इन लाइनों को भी हरिवंशराय बच्चन की आत्मकथा से जोड़ कर कहते, पति कुछ भी कर ले पत्नी के बराबर त्याग नहीं कर सकता। मानस के मर्म को बताते हुए वे सवाल उठाते बंदर और भालू कोई और नहीं आदिवासी ही थे शायद सर्वाधिक पिछड़े आदिवासी। इन आदिवासियों की मदद के बिना एक क्षत्रिय राजकुमार एक ताकतवर ब्राह्मण राजा को नहीं हरा सकता था, अच्छा होता तुलसीदास इस समाज को यह समझा पाते कि राम कथा में पुरूषोत्तम की मर्यादा को बचाए रखने का काम इन आदिवासियों ने ही किया था। आदि काल के यह वासी ही हर दौर में इस देश की रीढ़ थे।
अपने अंतिम दिनों में गले में असहनीय तकलीफ के चलते उन्हे बोलने में कठिनाई थी। लेकिन बोलने बतियाने की ललक बरकरार थी। कागज पर सवाल लिखते और इशारे से बताते कि मैं सुन सकता हूं, मानो कह रहे हो अभी तो मैं जवान हूं।
अशोक वाजपेयी ने शायद पिताजी को ध्यान में रखकर ही लिखा था- बच्चे एक दिन यमलोक पर धावा बोलेंगे, और छुड़ा ले आएंगे. सब पुरखों को वापस पृथ्वी पर, और फिर आंखे फाड़े विस्मय से सुनते रहेंगे, एक अनन्त कहानी सदियों तक।
फ्री टॉक टाइम इस के दौर में जहां मुलाकात मयस्सर नहीं होती, इस समाज को अंदाजा ही नहीं पिताजी के जाने पर उसने क्या खोया है। उनकी पढ़ी हुई एक किताब को देख रहा था .... एक लाइन के नीचे निशान लगा हुआ था, नींद आधी मौत है और मौत पूरी नींद.. हमेशा जगाने की कोशिश करने वाले पिताजी अब गहरी नींद में हैं। वे मर नहीं सकते, उनकी मौत की सच्ची खबर जिसने दी, वो झूठा था।Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-61811222060689192332009-06-01T06:41:00.000-07:002009-06-03T09:03:24.707-07:00बंधक कलमें<!--chitthajagat claim code--><br /><a href="http://www.chitthajagat.in/?claim=octcvue3fj2o&ping=http://puliaa.blogspot.com/" title="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी"><img src="http://www.chitthajagat.in/chavi/chitthajagatping.png" border="0" alt="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" title="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी";></a><br /><!--chitthajagat claim code--><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizKcE30LIWPgIVTsHn8km3OgCvMCA4PEOiCz5-dM5P38UMNK71Wvr65zL-bkFJLcnE0XmrZSxChGiyiRGh8yk0iYXoqtWKVJYPd8iccoOltlI7NEBDrBRvCoyt9VnHM-lz8o9nwVgYX6g/s1600-h/abhay"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5342356218682221186" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 156px; CURSOR: hand; HEIGHT: 200px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizKcE30LIWPgIVTsHn8km3OgCvMCA4PEOiCz5-dM5P38UMNK71Wvr65zL-bkFJLcnE0XmrZSxChGiyiRGh8yk0iYXoqtWKVJYPd8iccoOltlI7NEBDrBRvCoyt9VnHM-lz8o9nwVgYX6g/s200/abhay's+photo+1.JPG" border="0" /></a><br /><div><strong><em>यह आलेख २३ मई को जनसत्ता में प्रकाशित हुआ था , लोकसभा चुनावों का एक अनुभव आपके साथ बांटना चाहता हूं......</em></strong></div><br /><div><br />भूपेश कोई तीसेक साल का है, उससे मुलाकात पिछले दिनों इलाहाबाद में एक प्रत्याशी के चुनाव प्रबंधन करने के दौरान हुई। पहली मुलाकात में भूपेश ने अपने सरल स्वाभाव और स्पष्टवादिता से ये साफ किया कि उसकी लिखी खबरों में पक्षपात देखने को नहीं मिलेगा। मन को एक राहत मिली क्योंकि उस समय मेरे फोन पर अखबारों के दफ्तर से सिर्फ धमकी भरे फोन आ रहे थे, "पैकेज ले लिजिए क्योकि चुनाव मीडिया ही जितवाता है और मीडिया ही हरवाता है, बाकि आप खुद ही समझदार है।"<br />इस बार के चुनाव में शब्दों की जो मंडी लगी थी, उसमें सबके अपने अपने दाम थे, इस मंडी में शब्दों को बेचने वाली तथाकथित पत्रकारों की कौम के रवैये को देखकर जितना दुख हुआ , उससे कहीं ज्यादा हैरत इस बात पर हुई कि इस हमाम में आकंठ डूबे नंगो के बीच में एक व्यक्ति भूपेश भी है जो अभी भी पत्रकारिता पर विश्वास बनाने का प्रयास कर रहा है, समाज के प्रति जिम्मेदारी का एहसास उसकी आंखों में नजर आ रहा था। मैं इलाहाबाद इस उद्देश्य से गया था कि मीडिया जिस तरह से वेश्या से भी गिरी हुई स्थिति में आकर अपना ईमान बेच रहा है ,उसमें कहीं ऐसा ना हो कि पैसों की कमी की वजह से हमारे प्रत्याशी के बारे नकारात्मक खबरे छपने लगें। इसे रोकने के लिए तथाकथित पत्रकारों को हमारे द्वारा दिए जा रहे मंहगे उपहार को लेने से भूपेश ने ना केवल दृढ़ता से मना कर दिया, उल्टे हमें सलाह दी कि हम मीडिया को तोहफे देने के बजाए गांवों में जाकर लोगो से समर्थन मांगे। भूपेश की यह ना एक तमाचे की तरह थी,यह तमाचा उन पर था जो पत्रकारों को एक दलाल से ज्यादा कुछ नहीं समझते, यह तमाचा उस व्यवस्था पर था जो मानती है कि सबकुछ मैनेज हो सकता है और उन अखबार, चैनल मालिको पर भी था, जो मानकर चलते है कि पत्रकार मुफ्तखोर होता है इसलिए उसे कम वेतन दिया जाना चाहिए, यह तमाचा उन उम्मीदवारों के मूंह पर भी था जिन्होने पैसा फेंक कर पूरे अखबार को ही खरीद लिया था और कहीं ना कहीं यह तमाचा मेरे मूंह पर भी लगा था।<br />इलाहाबाद में अखबार सच नहीं लिख रहे थे बल्कि सच की रचना कर रहे थे, सभी पर सच की रचना करने और संस्थान की आय बढ़ाने का दवाब था। भूपेश द्वारा लिखी जा रही खबरों से लगातार हमारा नुकसान हो रहा था, लेकिन मै जानता था कि वह सच लिख रहा है, प्रत्याशी का करीबी होने के कारण हमारी कोशिश थी कि वह हमारे पक्ष में लिखे, लेकिन ऐसा ना होने पर मेरे अंदर का पत्रकार खुद को जीवित महसूस कर रहा था। पत्रकारिता की अमरता का एहसास कराता भूपेश की खबरों का उजाला, मैं अपने अंदर महसूस कर पा रहा था।<br />बचपन में, मेरे गांव सिहावल में एक ही अखबार आता था, गांव में बने एक सहकारी भवन , ब्लाक में आने वाला यह अखबार दोपहर तक ही गांव तक पहूंच पाता था, चाचा और उनके दोस्त इंतजार करते रहते, सबसे पहले खबरें वे ही पढते और शाम होते होते पूरे गांव में उस अखबार की खबरें पहूंच जाती, कभी मन में यह ख्याल भी नहीं आया कि इसमें कुछ गलत लिखा भी जा सकता है, वह अखबार एकमात्र जरिया था, गांव के बाहर की दुनियां को जानने समझने का, कुल मिलाकर हमारे लिए उस अखबार का लिखा, भगवान के लिखे से कम नहीं होता था। तब से अब तक बीस साल हो गये इतने सालों में मीडिया में सच्चाई के साथ संवेदनाओं के सरोकार पूरी तरह बदल गए है, सुना है जब इंदिरा गांधी के दौर में इमरजेंसी लगी थी, उस समय कई अखबारों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोके जाने के विरोध स्वरूप अपने अखबारों के संपादकीय पृष्ठ को काला करके छापा था, आज तो अखबारों ने अपने ही मुंह पर कालिख पोत ली है और सबसे खास बात .ये है कि अपने कालेपन पर इतराते ये लोग अब इस बात पर प्रतियोगिता लगा रहे हैं कि मेरे से तेरा रंग काला कैसे ? हिन्दी पट्टी में समाज का बहुत बड़ा वर्ग पत्रकारों में भरोसे का, एक अभिभावक का चेहरा देखता है, इस आम आदमी की हालत उस बच्चे की तरह है, जिसने अभी अभी चलने की शुरूआत की है वो अपना शरीर अपने पालक को सौंप देता है, उसे ये विश्वास होता है कि अगर मैं गिरूंगा तो कोई होगा जो मुझे थाम लेगा, लेकिन वो बेचारा आज भी नहीं जानता कि उसकी ओर बढ़ने वाले विश्वास के हाथों पर तो ना जाने कब से सोने की बेडि़यां पड़ गई हैं।<br />कु्ल मिलाकर इस बाजार में हर चीज बिक रही थी ख़बर, संपादकीय, और ख़बर के खॉचे में विज्ञापन, या फिर आपकी जीत पक्की करने के दावें करने वाले बड़े - बड़े बयान, सब कुछ उपलब्ध था। चुनाव लड़ने वाले हर प्रत्याशी पर इस बाजार से कुछ ना कुछ खऱीदने का दवाब था।सूचना के अधिकार और उससे बढ़कर आम आदमी के विश्वास की धज्जिया उड़ाते ये अखबार बेशर्मी के साथ पैसा लेकर सभी को जीतता दिखा रहे थे। ऐसे में एक दिन भूपेश का फोन आया, बेहद भर्राई हुई आवाज में उसने कहा सर हो सके तो जो विज्ञापन आप औरो को दे वह हमें भी दे, हमारी और कोई डिमांड नहीं है, मैने सहर्ष स्वीकृति दे दी किन्तु उसकी आवाज में छिपी बेबसी का दर्द मुझे समझ में आ रहा था। उसकी बेबसी ने मुझे किसी शायर की ये पंक्तियां याद दिला दी थी कि- तुम्हारे पास सरकार है हम इसलिए चुप हैं, हमारे पास घरबार है हम इसलिए चुप हैं।<br /><strong><em>अभय मिश्र<br />9871765552</em></strong></div>Unknownnoreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-61625006139418836982009-05-30T03:34:00.000-07:002009-05-30T04:17:30.401-07:00चुनाव में बिकी प्रेस ख़तरे में है - ख़बरदार!<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjm7S1JgXrKUnPv0bPCiBwhINB0Lu41tZ0bdyX3oJu654yVI9r56pJBHHvYE6aZo5rYg5X_5bouPVaKJa294ZmCrk4Fl6urVVruYwSC5VysqfwQ_LD7e_-E3EYOflx703qNn2HTMO6yNQs/s1600-h/prabhash+joshi+ji.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5341573698638140130" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 148px; CURSOR: hand; HEIGHT: 200px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjm7S1JgXrKUnPv0bPCiBwhINB0Lu41tZ0bdyX3oJu654yVI9r56pJBHHvYE6aZo5rYg5X_5bouPVaKJa294ZmCrk4Fl6urVVruYwSC5VysqfwQ_LD7e_-E3EYOflx703qNn2HTMO6yNQs/s200/prabhash+joshi+ji.jpg" border="0" /></a><br /><br /><br /><strong><em>प्रभाष जोशी ने मीडिया मंडी के विरोध में मशाल जला ली है, इसे बुझने नहीं देना है, इस आलेख में आपातकाल के दौर का उनका अनुभव, उन मीडिया मालिकों और पत्रकारों के मूंह पर तमाचा है जो एडिटोरियल को एडवरटोरियल बनाने पर तुले है, प्रभाष जी ने आंदोलन शुरु कर दिया है लेकिन पत्रकारिता का अपहरण करने वालों ने उनके किसी भी बयान को कवरेज ना देने की साजिश की है, रोहतक हो या इंदौर, प्रभाष जी जहां भी कार्यक्रमों में शामिल हो रहे है, इक्का दुक्का अखबारों को छोड़कर कोई अखबार चर्चा तो दूर सूचना भी नहीं दे रहा, साफ है यह वहीं अखबार है जिन्होने चुनाव में अपना तो सबकूछ बेचा ही हमारे विश्वास को भी गिरवी रख दिया....</em></strong><br /><strong><em></em></strong><br /><strong><em></em></strong><br /><br />हिंदी का पहला अखबार उदंत मार्त्तण्ड कोलकाता से 30 मई, 1826 को निकलना शुरू हुआ। उसके हर अंक के अंत में लिखा रहता था,<br />यह उदंत मार्त्तण्ड कलकत्ते के कोल्हू टोला के अमड़ा तला की गली के 37 अंक की हवेली के मार्त्तण्ड छापा में हर सतवारे मंगलवार को शाया होता है। जिनको लेने का काम पड़े वे उस छापा घर में अपना नाम भेजने ही से उनके समीप भेजा जाएगा। उसका मोल महीने में दो रुपया।’<br />संपादक युगल किशोर शुक्ल ने उदंत मार्त्तण्ड के पहले अंक में लिखा था,<br />यह उदंत मार्त्तण्ड अब पहिले पहल हिंदुस्तानियों के हित के हेतु जो आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंगरेजी ओ फारसी ओ बंगले में जो समाचार का कागज छपता है, उसका सुख उन बोलियों के जान्ने ओ पढ़ने वालों को ही होता है। …देश के सत्य समाचार हिंदुस्तानी लोग देख कर आप पढ़ ओ समझ लेंय ओपराई अपेक्षा…!<br />इसलिए 30 मई हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनता है। (यह जानकारी हमने माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान भोपाल के लिए विजयदत्त श्रीधर द्वारा संपादित भारतीय पत्रकारिता कोश से ली और इसके लिए हम उनके आभारी हैं।<br />------------------------------------------------------------------------------------------------<br />जनवरी सतत्तर में जिस दिन इंदिरा गांधी ने आम चुनाव की घोषणा करवायी, हम पटने में जेपी के पास थे। रास्ते में कोई दुर्घटना हुई होगी, इसलिए हमारी रेलगाड़ी लखनऊ से चक्कर लगाती हुई आयी। दिल्ली गांधी शांति प्रतिष्ठान में घर पहुंचे ही थे कि रामनाथ गोयनका अपनी फियट गाड़ी चलाते हुए आये। वे बड़े उत्साह, उत्तेजना और उतावली में थे। चाहते थे कि हम तत्काल उनके साथ एक्सप्रेस चलें और चुनाव को खूब अच्छी तरह से कवर करने की योजना बनाएं और काम में लग जाएं।<br />तब सेंसरशिप के कारण अखबारों में लोगों के हाल और वे क्या महसूस कर रहे हैं, यह छपता तो था नहीं। दूरदर्शन और आकाशवाणी थे, पर वे तो सरकार के सीधे कब्जे में थे। चुनाव करवा रही हैं तो इंदिरा गांधी को छूट या ढील तो देनी ही पड़ेगी, नहीं तो दुनिया इसे खुला, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं मानेगी। अपने इमरजंसी राज को लोकतांत्रिक वैधता, मान्यता और स्वीकृति दिलाने के लिए ही तो वे चुनाव करवा रही थीं।<br />परिस्थिति की इस ज़रूरत का उपयोग हमने अपने कवरेज में करने का तय किया। दिल्ली से दूर अलग-अलग भाषाओं के अखबार न सिर्फ सरकारी शिकंजे से दूर थे, वे अपने लोगों के नजदीक भी थे। लोगों में खदबदा रहा आक्रोश और परिवर्तन भाषाई अखबारों में प्रकट होना ही था, क्योंकि अपनी भाषा में राजनीतिक परिवर्तन जितना सीधा और सच्चा निकल कर आता है, अंग्रेजी और तथाकथित राष्ट्रीय अखबारों में नहीं आता। इसलिए हमने तय किया कि भारतीय भाषाओं के सभी अखबार सबेरे उनके प्रकाशन केंद्रों में खरीदवाएंगे और उन केंद्रों से जो पहली उड़ानें दिल्ली आती हैं उनसे मंगवा लेंगे। एक्सप्रेस गेस्ट हाउस में जो बड़ा हॉल था वहां ये सब अखबार इकट्ठे किए जाएंगे। दिल्ली में अलग-अलग राज्यों के जो भवन हैं और भारतीय भाषाओं के केंद्र हैं, उनमें से भारतीय भाषाओं के जानकारों को बुलाएंगे। उन्हें उनकी भाषाओं के अखबार देंगे और अनुरोध करेंगे कि हिंदी या अंग्रेजी में उनके चुनाव कवरेज का सार लिख कर दे दें।<br />हमने यह इंतजाम किया और कोई दो महीने तक भारतीय भाषाओं के अखबारों के चुनाव कवरेज का सार निकालने और फिर उन रिपोर्टों के आधार पर एक्सप्रेस में छापने के लिए खबरें विश्लेषण फीचर, लेख आदि तैयार किये। यह न सिर्फ सीधी और प्रामाणिक जानकारी थी, इसमें इतनी सच्चाई थी कि सतत्तर के उस ऐतिहासिक और युगांतरकारी चुनाव के कवरेज के कारण एक्सप्रेस जनता का सबसे विश्वसनीय और प्यारा अखबार हो गया। तब लोगों में जनता पार्टी और गठबंधन की ऐसी जबरदस्त लहर थी कि लोग एक्सप्रेस को जनता एक्सप्रेस कहते थे। सर्क्यूलेशन के आंकड़े भी दे सकता हूं क्योंकि वे मुझे अब भी याद हैं। लेकिन लोगों के मन पर असर के नाते- अखबार की बिक्री के आंकड़े ज्यादा कुछ नहीं बताते। अपने देश में एक अखबार लेता है और कई लोग उसे पढ़ते हैं और उनसे भी कई गुना ज्यादा लोग उस पर बात करते हैं। इस तरह जो माहौल बनता है वह लोगों का मन बनाने में मददगार होता है।<br />भारतीय भाषाओं के कवरेज के आधार पर तैयार की गई हमारी चुनाव सामग्री, जनता में जो सचमुच हो रहा था, उसकी सच्ची तस्वीर पेश करती थी। तब अखबारों पर से इमरजंसी और सेंसरशिप का खौफ उतरा नहीं था और देश भर से जो खबरें आ रही थीं, वे सत्तारूढ़ प्रतिष्ठान के खिलाफ जा रही थीं। उन्हें छापने में अख़बार झिझकते थे और सावधानी बरतने के लिए खबरों और अपने कवरेज को संतुलित करने की कोशिश करते थे। एक्सप्रेस का कवरेज आखिर चुनाव नतीजे के सबसे करीब निकला। न सिर्फ इंदिरा गांधी और संजय गांधी खुद हार गये, इमरजेंसी की ज्यादतियों में जिन-जिन नेताओं ने इनका साथ दिया था, जनता ने उन्हें चुन-चुन कर हराया। जिनने इमरजेंसी को भुगता और उसका विरोध किया था, वे सभी मजे में चुनाव जीत कर आये। ऐसी एक्सप्रेस की विश्वसनीयता थी कि नयी दिल्ली के बहादुरशाह जफर मार्ग पर चुनाव नतीजे दिखाने वाले बोर्ड तो सभी ने लगाये थे, लेकिन सबसे ज्यादा लोग एक्सप्रेस का बोर्ड देखने जमा होते और तालियों और जयकारों से ख़बर का अभिवादन करते।<br />तब के एक्सप्रेस के चुनाव कवरेज को यह विश्वसनीयता भारतीय भाषाओं- खास कर हिंदी के क्षेत्रीय अखबारों के कवरेज पर भरोसा करने के कारण मिली थी। सबसे बड़े और ज़बरदस्त परिवर्तन हिंदी इलाके में हुए थे। कलकत्ते से अमृतसर तक कांग्रेस को कुल जमा एक सीट मिली थी। इस परिवर्तन को हिंदी इलाके के तब के छोटे क्षेत्रीय अखबारों ने बखूबी पकड़ा और उजागर किया था। सच पूछिए तो भारतीय भाषाओं के, खास कर हिंदी के अखबारों ने तभी करवट ली। वे अपने पारंपरिक शिकंजों और ढांचों से बाहर निकले और आज के बड़े अखबार बने हैं। भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता में यह क्रांति सतत्तर के चुनाव से ही आयी थी। भारतीय लोकतंत्र के भारतीयकरण में इन अखबारों की भूमिका सचमुच गजब की है।<br />लेकिन आज हिंदी पत्रकारिता दिवस पर उस समय और भूमिका को मैं बड़े दुख और अफ़सोस के साथ याद कर रहा हूं। अप्रैल और मई में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान हिंदी के हर राज्य में जाना हुआ और आदतन हर अख़बार को मैंने उसी विश्वास और भरोसे से पढ़ने को उठाया जो अपनी भाषा के अखबारों पर मेरी आदत में आ गया है। आखिर मैं भी ऐसे ही एक अखबार का बेटा हूं और उस पर भरोसा न करना मुझे अपनी ही उत्पत्ति और जीवन में अविश्वास करना लगता है। लेकिन सचाई है और इसे मैंने पत्रकारों, संपादकों, मालिकों, पाठकों, उम्मीदवारों और उनकी पार्टी के नेताओं से पूछ-पूछ कर पुष्ट किया है कि लगभग सभी अख़बारों का चुनाव कवरेज खुद का किया प्रामाणिक रूप से अपना नहीं था। इक्के-दुक्के अपवादों को छोड़ कर हर अखबार ने चुनाव कवरेज का अपना पैकेज बनाया था। हर उम्मीदवार को वह बेचा गया और जिसने जितना पैसा दिया, उसके मुताबिक उसी की दी गयी खबरें मय गलतियों के छापी गयीं। फोटू भी उन्हीं के दिये छपे। इंटरव्यू, जनसंपर्क, सभा, रैली, समर्थन, अपीलें सभी पैसे लेकर छापी गयीं।<br />चुनाव के इस कवरेज में किसी ने नहीं लिखा कि यह पैसे ले कर विज्ञापनों को ख़बरों की तरह छापा जा रहा है। बल्कि पूरी कोशिश की गयी कि वे बिलकुल ख़बरें लगें और अखबार के अपने संवाददाताओं, पत्रकारों और लेखकों को खोजबीन और पड़ताल करके बनायी गयी लगें। मजा यह है कि पाठकों के साथ विश्वासघात करने का यह धंधा- अखबार में काम कर रहे सभी लोगों की जानकारी में किया गया है। इसे करने वाले लोगों को उनके काम के मुताबिक कमीशन दिया गया। इस धंधे में लिखत-पढ़त कहीं नहीं की गयी। देने वाले उम्मीदवार इसे अपने चुनाव खर्च में डालना नहीं चाहते थे, इसलिए उनने काला पैसा दिया। अखबारों ने यह काला पैसा न सिर्फ लिया, बल्कि कई अखबारों और पत्रकारों ने बाकायदा वसूल किया। सब जानते हैं कि अपने देश में चुनाव काले पैसों से लड़ा जाता है। लेकिन अख़बार और उनका चुनाव कवरेज भी इसी काले धन से होता है, यह इस बार व्यापक रूप से माना गया। अखबारों ने पाठकों को नहीं बताया कि वे खबरों के रूप में विज्ञापन छाप कर उनके साथ विश्वासघात कर रहे हैं और वे भी काले पैसे के धंधे में शामिल काली खबरें छाप रहे हैं। कोई विश्वास करेगा कि अखबार अब भ्रष्टाचार की निगरानी करके उसका भंडाफोड़ कर सकते हैं?इसलिए लोगों ने पढ़ा कि एक पेज पर तीनों चारों उम्मीदवार जीत रहे हैं क्योंकि उन सब ने पैकेज लिये थे और वे सब जीतने का दावा करके उसकी खबर छपवा रहे थे। जिसकी खबर नहीं छपी उसने पैकेज नहीं लिया था। जिसके खिलाफ़ ख़बर छपी उसे उसके विरोधी उम्मीदवार ने पैसे देकर छपवाया था। जीतने वाले आधा दर्जन उम्मीदवारों ने मुझसे कहा कि कई बार उनके मन में आया कि वे चुनाव अख़बार या अख़बारों के खिलाफ़ लड़ लें। लखनऊ से जीतने वाले लालजी टंडन ने तो प्रेस कांफ्रेंस करके बीच चुनाव में बता दिया था कि फलां अख़बार फलां प्रतिद्वंद्वी से पैसा लेकर उनके खिलाफ़ क्या कर रहा है। अख़बारों की ख़बरों की जगह पवित्र मानी जाती है क्योंकि पाठक उन पर भरोसा करते हैं। अखबारों ने यह जगह काले पैसों में बेच कर उनका विश्वास तोड़ा और अपनी विश्वसनीयता गंवायी। इस काले धंधे की न उन्हें लाज है, न चिंता कि उनने पत्रकारिता को सस्ते में नीलाम कर दिया है। अब हर लोकतंत्र में चुनाव ऐसा अवसर होता है, जब मीडिया की भूमिका कसौटी पर होती है। पाठक ही नहीं, पार्टियां और उनके उम्मीदवार भी अपेक्षा करते हैं कि अख़बार सच्ची और प्रामाणिक खबरें देंगे और देश को वोट देने का फै़सला करने में मदद करेंगे। यह पत्रकारिता का धर्म और ज़िम्मेदारी है। लोकतंत्र स्वतंत्र प्रेस के बिना नहीं चल सकता और स्वतंत्र प्रेस ही लोगों के हित और लोकतंत्र की रक्षक होती है। अमेरिका जैसे खुले पूंजीवादी लोकतंत्र में भी प्रेस की भूमिका राज्य के डर और पूंजी के लालच से स्वतंत्र अपना नीर क्षीर विवेक का काम करना है। भारत में तो प्रेस की, खासकर भाषाई प्रेस की भूमिका और भी उदात्त और बलिदानी रही है। वह आज़ादी के आंदोलन और फिर राष्ट्र और लोकतंत्र के निर्माण की भागीदार और गवाह रही है और मुनाफा कमाने की इच्छा से बदल कर प्रदूषित नहीं हो सकती। ज़रा सोचिए कि इस लोकसभा चुनाव में हमारी प्रेस ने उसमें हमारे विश्वास और लोकतंत्र का क्या किया है?<br />प्रेस की स्वतंत्रता को ख़तरा सिर्फ राज्य के दमनकारी क़दमों और कानून-नियमों से ही नहीं होता। ऐसे ख़तरे से भारतीय प्रेस इमरजंसी और सेंसरशिप से निपटी है और अपनी स्वतंत्रता के प्रति बहुत सचेत और संवेदनशील है। लेकिन इस चुनाव ने बताया कि आज के भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को राज्य से उतना खतरा नहीं है जितना पूंजी और मालिकों के लालच, अनैतिकता और भ्रष्टाचार से है। चुनाव में लड़ने वाले हर उम्मीदवार की तरह राजनेता पसंद करेगा कि अखबार पैसा लें और वही छापें जो वह चाहता है कि अख़बार छापें। तब तो अख़बार पैसे वाले राजनेता के गुलाम हो जाएंगे और राजनेता पैसे वालों के। तब क्या हमारा लोकतंत्र जनता के वोटों पर चलने वाला जनता का तंत्र होगा? क्या हमारी प्रेस ही हमारे लोकतंत्र को नष्ट करने में भागीदार होगी? क्या हमारी प्रेस ही काले धन के भ्रष्टाचार की वाहक हो जाएगी?<br />अगर आप सच्चे पाठक हैं तो आपके जागने का समय आ गया है।<br /><br /><strong><em>साभार: जनसत्ता, 30 मई 2009</em></strong>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-36199534420855746532009-05-29T06:09:00.000-07:002009-05-29T06:29:03.881-07:00पंकज रामेंदू की दो कविताएँ<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_aFlSdsZnu0Xkv4Cc3lRYKaOGNduI_D9qG0yI7FVHLakUGw-faOjuHqOCPZhHPpTlqzqiYmFVphAo4Z8VoItizbew-99uv1WrQVUYZFa9H4BWNjE1a3DrvTR1BlzDAylV8TrdNdAyggI/s1600-h/pintu.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5341236295964066850" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 150px; CURSOR: hand; HEIGHT: 200px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_aFlSdsZnu0Xkv4Cc3lRYKaOGNduI_D9qG0yI7FVHLakUGw-faOjuHqOCPZhHPpTlqzqiYmFVphAo4Z8VoItizbew-99uv1WrQVUYZFa9H4BWNjE1a3DrvTR1BlzDAylV8TrdNdAyggI/s200/pintu.jpg" border="0" /></a><br /><div><br /></div><div align="center"><strong><em><span class="">काश ऐसा होता !</span></em></strong></div><div align="center"><br /></div><strong><em></em></strong><div align="center"><br />काश ऐसा होता<br />कि जिंदगी की उलझनें,<br />महबूबा की जुल्फों की तरह होती,<br />जिनमें जब प्रेमी अपने<br />बेबस, झिझकते हुए हाथों को डालता है<br />तो वो खुद-ब-खुद<br />सुलझने को राज़ी हो जाती हैं,<br />औऱ ये उलझन<br />एक अजीब सा आंनंद देती है<br />एक ऐसी उलझन,<br />जिसे बार-बार सुलझाने का मन करता<br /><br />काश ऐसा होता !<br />कि जिंदगी की उलझनें,<br />पंतग के मांजे की तरह होतीं,<br />जिसके दोनों सिरों को पकड़<br />नादान बच्चा भी उन्हें सुलझा लेता है,<br />और वो उलझने,<br />उस मासूम बच्चे के इशारों पर ,<br />ऐसे खुल जाती हैं<br />जैसे हवा के झोंके से,<br />खिड़की का पल्ला खुल जाता है।<br /><br />काश ऐसा होता !<br />कि वक्त रूठता तो इस तरह<br />जैसे कोई बच्चा अपनी मां से रूठ जाता है,<br />जिसके रूठ कर बात ना करने में भी,<br />एक अनोखा सा आनंद आता है,<br />जिसे मनाने की जद्दोज़हद<br />हमें भाव-विभोर कर देती है<br />जिसका रुठना हमें मनोरंजित करता,<br />काश ऐसा होता !</div><div align="center"><br /></div><div align="center">---------------------------------------</div><div align="center"><br /></div><div align="center"></div><div align="center"><br /></div><div align="center"><strong><em>एक सवाल</em></strong><br /><br />हर बार सोचता हूं कि</div><div align="center"><br />जिंदगी जब एक रूपया हो जायेगी,</div><div align="center"><br />तो बारह आने खर्च कर डालूँगा</div><div align="center"><br />औऱ चाराने बचा लूंगा,</div><div align="center"><br />कभी ज़रूरत पड़े,तो </div><div align="center"><br />इन चारानों से बारानों का मज़ा ले सकूं,</div><div align="center"><br />लेकिन जब भी वक्त की मुट्ठी खुलती है</div><div align="center"><br />तो हथेली पर चाराने ही नज़र आते हैं</div><div align="center"><br />पूरी जिंदगी चाराने को बाराने बनाने में</div><div align="center"><br />होम हो जाती है,</div><div align="center"><br />कई बार लगता है कि जब ये रुपया हो जायेगी</div><span class=""></span><div align="center"><br />तो क्या जिंदगी, जिंदगी रह जाएगी ?<br /></div><div align="justify"></div>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-27395920606352814632009-05-20T07:32:00.000-07:002009-05-20T07:54:46.734-07:00भरोसे की कीमत पर..<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgH4XQGCwROlEbeb9JpQ5DzGQjXMulSpSrVU-eiQdBjilfEzeHGQGQUq3_EbRLohwPdKEVeRGYxZs34RmLyAw6aQWRDWIfW-oP81SgWXfrQnR44OSMYTp0PbJ_mBiK2ZdCqID5twrH6XbI/s1600-h/rajesh+katiyar.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5337917267189729586" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 157px; CURSOR: hand; HEIGHT: 200px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgH4XQGCwROlEbeb9JpQ5DzGQjXMulSpSrVU-eiQdBjilfEzeHGQGQUq3_EbRLohwPdKEVeRGYxZs34RmLyAw6aQWRDWIfW-oP81SgWXfrQnR44OSMYTp0PbJ_mBiK2ZdCqID5twrH6XbI/s200/rajesh+katiyar.jpg" border="0" /></a><br /><br /><br /><strong><em>पत्रकारिता के क्षेत्र में राजेश कटियार की धमक और दखल नया नहीं है, मीडिया को अक्सर आईना दिखाने वाले राजेश जी का यह लेख कुछ दिन पहले जनसत्ता में छपा है। मीडिया की मंडी में बिक रहे और सूचना के अधिकार का अपहरण कर रहे अखबारों और चैनलों की हालात को उन्होने एक त्रासदी के रुप में बयान किया और चेताया भी है........</em></strong><br /><strong><em></em></strong><br /><br /><strong><em></em></strong><br />सूचना क्रांति के दौर में भी सही खबर का अभाव किसी त्रासदी से कम नही है। ताजा लोकसभा चुनावों में इसका प्रत्यक्ष अनुभव हो रहा है। एक दशक पहले जब आज की तरह सूचना क्रांति का बोलबाला नहीं था तब अखबारों पर भरोसा था और अखबारों का खबर पर भरोसा था। अनेक स्थानों पर खबर की रफ्तार सुस्त थी। लेकिन देर से ही सही जानकारी सटीक मिलती थी। तब चुनावी विश्लेषणों से काफी हद तक यह संकेत मिल जाता था कि चुनावी हवा का रूख किस दिशा में है। चुनाव नतीजों के बाद अधिकतर अखबारों की खबर होती थी कि अनुमान के मुताबिक ही नतीजे मतदान पेटियों से निकले। अखबारों का अपना आकलन, सपाट रिपोर्टिंग और सपाट नतीजे। राज्यों के चुनावों में भी कमोवेश ऐसा ही आकलन होता था।<br /><br />लेकिन अब ऐसा नहीं हैं। मतपेटियों का स्थान इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन ने लिया है। वहीं प्रचार का काम पोस्टर, दीवान लेखन व ध्वनि प्रचार के स्थान पर अखबारों ने संभाल लिया है। लेकिन प्रचार के इस तरीके के तहत अखबारों में चुनावी खबरों ने विज्ञापन का रूप ले लिया है। उत्तर प्रदेश में चुनावी जायजा लेते हुए राज्य के एक प्रमुख अखबार को पढ़ते हुए उसकी एक खबर पर नजर पड़ी कि ‘मीडिया के घोड़े भी चुनावी मैदान में’। यह खबर चौंकाने वाली थी, इसलिए उसे ध्यान से पढ़ा। उसका सारांश था कि कुछ अखबारों ने चुनावी समर में अपनी बोली लगा ली है। लोकतंत्र के लिहाज से देश के सबसे धनी इस राज्य के बड़े अखबार घराने भी बोली लगाने वालों में हैं। यह कोई नहीं बल्कि राज्य का ही तीसरा अखबार बता रहा है। चुनावी बिगुल बजते ही इन अखबारों ने बाकायदा अपना पैकेज प्रिंट कर हरेक पार्टी के उम्मीदवारों या उनके प्रबंधकों से संपर्क साधा। एक अखबार की चुनावी नीति है कि वह तय पैकेज में उम्मीदवार की हरेक खबर को विज्ञापन रेट पर छापेगा। जिससे उसकी बात नहीं बनी, पूरे चुनाव में उसकी एक भी खबर नहीं छपी। उसके प्रचार में कोई राष्ट्रीय नेता गया तो संबंधित खबर अंदर कहीं सिंगल कालम में देकर अपना फर्ज अदा कर लिया। दूसरे अखबार का एक मुश्त रकम पर प्रचार के दरम्यान दो टेबलायड, विज्ञापन के साथ प्रमुख खबरों का पैकेज था। दरअसल, उम्मीदवार इस गुमान में रहते हैं कि मीडिया ही हवा बनाता है, उन्होंने सौदा कर लिया। उनकी पार्टियां गौड़ हैं। जो सौदा नहीं करते, वह सार्वजनिक रूप से अखबारों पर बिकने के आरोप लगा रहे हैं।<br /> <br />दिलचस्प है कि यही अखबार में अपने अखबार में चुनाव में मतदान के लिए नियमित जन जागरण अभियान भी चला रहे हैं। उनका यह प्रयास शायद यह बताने के लिए है कि हमारे पास वोट डलवाने की की ताकत है। उसकी कीमत है। लेकिन यह इतनी ज्यादा है कि हर उम्मीदवार दांव नहीं लगा सकता। इसलिए कई उम्मीदवारों ने इस समस्या पर चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया। कुछ ने प्रेस काउंसिल में शिकायत दर्ज कराई। कई ने अपनी चुनावी सभाओं में अखबारों पर बिकने का आरोप मढ़ा। लेकिन अनुभव में यही आया कि कोई संस्था इस पर पहल नहीं कर पाई। प्रचार के बदले तरीके में अखबारों को अपनी भूमिका समझनी चाहिए। उनके विज्ञापन लेने पर कोई मनाही नहीं है। लेकिन विज्ञापन को विज्ञापन की तरह होना चाहिए। खबर विज्ञापन के रेट पर छपे और नीचे कहीं किसी ऐजेंसी का जिक्र न हो तब यह भ्रम होता है कि वह अखबार की अपनी खबर है। लेकिन वह है विज्ञापन जिसका अखबार ने रेट तय किया है। उम्मीदवार की तरफ जो खबर आती है, उसे उसी रूप में विज्ञापन रेट पर छाप दिया जाता है। दरअसल, यह उन पाठकों के प्रति बेईमानी है जो अखबार खरीदते हैं। खबरों को वह सच मानते हैं। उन पर धारणा-अवधारणा बनकर चर्चा होती है। लोकत्रंत के लिए यह बेहद जरूरी है। लेकिन जब खबरों को पेश करने का तरीके से मालूम ही न पड़े कि वह खबर है या विज्ञापन, तब यह एक गंभीर सवाल है। अपनी बोली लगाकर अखबारों ने खबर और विज्ञापन का फर्क मिटा दिया है। ध्यान रखने की बात है कि अखबार एक दस्तावेज होता है जिसे कितने ही पाठक सहज कर रखते हैं। इसीलिए यह माध्यम खबरिया चैनलों से सशक्त है। चैनलों की खबरों की तुलना में अखबार की खबरों की उम्र कहीं ज्यादा होती है।<br /><br />ध्यान रखना चाहिए कि मीडिया के प्रचार से सरकार बनती और बिगड़ती नहीं है। ऐसा होता था तो पिछले लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में राजग का शासन होना चाहिए था। मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री नहीं बनती। मध्य प्रदेश में छह साल पहले दिग्विजय सिंह की सरकार नहीं उखड़ती। खबरों के अनुमान से उलटा हुआ। मायावती को उत्तर प्रदेश में स्पष्ट बहुमत मिला। उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में हरेक अखबार का दावा था कि लटकी विधानसभा होगी। चुनाव के एन वक्त एक गंभीर चैनल का सर्वे था कि उत्तर प्रदेश में भाजपा नंबर एक पर है। लेकिन यह सर्वे एक सोच-समझा खेल था। इसका मकसद था कि ऐसे सर्वे से उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों को वोट उस दल को थोक भाव में मिल जाएगा जिसने उसके सहारे राज्य की राजनीति में पैर पसार रखे हैं। इतना खेल होने के बाद भी मायावती ने बिना किसी प्रचार के अपने दम पर राज्य की राजनीति की धुरी बन गईं। चुनाव के नतीजों ने सबकी पोल खोल दी। दरअसल समाचार माध्यमों को जमीन सूंघने की फुर्सत नहीं है। इसलिए प्रचार के मामले में संबंधित संस्थाओं को गंभीर होना चाहिए। साथ ही पार्टियों को ध्यान रखना चाहिए कि उसने अपनी खबर खरीद तो नहीं ली हैं। चुनाव लोकतंत्र का पहिया है। इसकी धुरी में विज्ञापन के रेट पर खबरों का तेल नहीं डाला जाना चाहिए। ऐसा होगा तो नतीजे अनुमान के मुताबिक नहीं निकलेंगे और जगहंसाई अलग होगी।Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-19225857211143025022009-04-04T07:59:00.000-07:002009-04-04T08:41:22.303-07:00रंग में डूबे सियारों की होली<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1UJjUIqhEi0mxguYYGQdB-hY-6DPW9tqZ5Ldh_0vKYAaVei1cYAOYkFA_P32-fAUBu-Xbsis4Udvq0z0WSd4FX0eUaoxH19JnktCQOUYAmL7Swc4ElGvrLbXb0yCxDHRPnLVSmLNOzs0/s1600-h/abhay"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5320855919118714290" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 156px; CURSOR: hand; HEIGHT: 200px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1UJjUIqhEi0mxguYYGQdB-hY-6DPW9tqZ5Ldh_0vKYAaVei1cYAOYkFA_P32-fAUBu-Xbsis4Udvq0z0WSd4FX0eUaoxH19JnktCQOUYAmL7Swc4ElGvrLbXb0yCxDHRPnLVSmLNOzs0/s200/abhay's+photo+1.JPG" border="0" /></a><br /><div><strong><em>यह लेख आज जनसत्ता ने छापा है, आपसे सांझा कर रहा हूं।<br /></em></strong><br />हालिया फिल्म गुलाल का एक डायलाग है- गुलाल असली चेहरे को छुपा देता है।शायद बात सही भी है लेकिन गुलाल की रंगत भी कई बार चेहरे के पीछे के दूसरे रंग को नहीं छिपा पाती है। कुछ ऐसा ही देखने को मिला इस होली में, यह होली सर को झूका देने वाली थी, राजनीति के झंडाबरदारों की होली में बेशर्मी सर चढ़कर बोल रही थी। होली के काफी पहले ही कई नेताओं ने मुबंई हमलों के विरोध में या यूं कहे अफसोस जताने की विवशता में, होली ना खेलने का खुला चुनावी एलान कर दिया था। लेकिन वो नेता ही क्या जो शब्दों के रंग बिखेरना और उन्हे कूटनीति के तेल से मिटाना ना जानता हो। अब नेताजी ने मूंह से कह दिया था कि होली के दिन रंग अबीर नहीं उड़ेगा तो उन्होने होली के एक दिन पहले ही खुद को समर्थकों के साथ गुलाल से सराबोर कर लिया, आखिर वादें के मुताबिक अगले दिन उन्हे रंग गुलाल से दूरी बना कर रखनी थी,<br />वो कहते है ना कि काले रंग पर कोई रंग नहीं चढता भले ही उसे कितने ही चटक रंगो से क्यों ना छिपाया जाए, मुंबई हमलों के पीड़ित परिवारों को लेकर इन्हे कितना दुख है ये गुलाल में चेहरा छिपाने के वाबजूद सामने आ ही गया, कवरेज के लिहाज से सबसे पहले प्रधानमंत्री पद की प्रतिक्षा सूची में खड़े नेता के घर पहूंचा तो दरवाजे पर ही नोटिस लगा हुआ था, जिस पर लिखा था - मुंबई हमलों के पीड़ित परिवारों के दुख में शामिल होते हुए हमने होली ना मनाने का निर्णय लिया है। जाहिर है मीडिया के प्रवेश पर भी पाबंदी थी, कुछ देर उनके घर के बाहर खड़े रहे, पूर्व परिचित गार्ड ने बताया, साहब कुछ खास लोगो से ही गुलाल लगवा रहे है। थोड़ी देर में ही उसकी बात सच होती नजर आई कुछ खास गाडिया जिसमें गुलाल लगाए लोग बैठे थे, बंगले के अंदर जा रही थी, इन गाड़ियों में बैठे लोग वो सियार थे जो रंग से नहीं रंगत से अपने सियार दोस्त को पहचान लेते है।<br />बहरहाल कुछ देर तक यह नजारा देखने के बाद हम एक पार्टी के अध्यक्ष के निवास पर पहूंचे, यहां निराशा हाथ नहीं लगी क्योकि अध्यक्ष जी गुलाल में सराबोर सभी का स्वागत करने को तैयार बैठे मुस्करा रहे थे, ठोल के साथ होली खेले रघुवीरा .. की गूंज थी, शिव का भेष धर एक बच्चा अध्यक्ष जी के सामने नृत्य पेश कर रहा था और बीच -बीच में एक बटन की सहायता से उसकी जटाओं से निकलती गंगा की धार अध्यक्ष जी के पैरों पर पड़ कर खुद को कृताज्ञ महसूस कर रही थी। बालक शिव द्वारा बार - बार की जा रही इस लीला पर अध्यक्ष जी भाव विभोर हुए जा रहे थे। मुझे दिल्ली-6 का एक दृश्य याद आ गया जिसमें विधायिका के पहूंचने पर रामलीला को बीच में ही रोक दिया जाता है और राम लक्ष्मण हनुमान सभी माला पहना कर विधायिका का स्वागत करते है फिर शिव अपना तांडव भी पेश करते है, आवाज गूंजती है- भगवान भी कुर्सी का महत्व समझते है। बचपन में मेरे गांव सिहावल में रामलीला के मंचन के दौरान लोग राम लक्ष्मण बने कलाकारों के चरण छूते थे रामलील शुरु होने से पहले क्षेत्र के नेता आकर कलाकारों को माला पहनाते थे। गांव का वह रामलीला क्षेत्र हमारे लिए आस्था का मंदिर होता था आस्था आज भी है बस उसका दिशा परिवर्तन हो गया है, वैसे भी मौका परस्ती का ऊंठ हमेशा वक्त की करवट को देखकर रंग बदलता है। पहले होली पर बाबू जगजीत सिंह की बिलवरिया तान होली के रंग में वीर रस घोल देती थी, सुर और तान आज भी छेड़े जाते है लेकिन अब वीर रस की मांग कम है, वीर रस के बिलवरिया की जगह चापलूसी की चालीसा ने ले ली है। चुनाव के ठीक पहले आई इस होली में हर जगह इसी चालीसा की तान सुनाई दे रही थी, एक अन्य नेता को टिकिट के इच्छुक लोग लड्डूओं से तौल रहे थे, इस तौल मोल में कई सारे लड्ड़ूओं का चूरा बन जमीन पर गिर गया जिसे उठा कर वापस तराजू पर रख दिया गया, इसके बाद यहीं लड़डू वहां मौजूद लोगो को बांटे गए, लड्ड़ू देख कर ही लग रहा था कि वह खाने के लिए नहीं तौलने के लिए ही बनाए गए है,पर जोगीरा की तेज तान के बीच अपने नेता को खुश करने के लिए लोगो ने लड्डू मूंह में डाल भी लिए और उसकी मिठास का आनंद भी उठाया।<br />बहरहाल नेताओं की इस होली के नजारे यही खत्म नहीं हुए,होली पर जहां एक दूसरे के मुंह में गुछिया जबरदस्ती डाली जाती है वहीं प्रदेश स्तर के भगवा नेता के यहां गुछिया और कचौरी को चाकू से आधा-आधा काटकर पसोरा जा रहा था,उनके खासमखास मुस्कराते हुए स्टाल के पास खड़े भीड़ पर नजर रखे थे, एक ने संतो जैसी मुस्कराहट के साथ मेरी तरफ देखा , जिसका सीधा मतलब था खबरदार जो एक पीस से ज्यादा उठाया। संभवत कार्यकर्ताओं की बढ़ती भीड़ के कारण उन्हे ऐसा करना पड़ा होगा। खैर होली बीत गई और नेताओं ने अपने अपने मतलब का गुलाल भी पोता ना सिर्फ अपने चेहरे पर बल्कि हमारे आपके चेहरों पर भी।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-226834322947394532009-01-16T01:36:00.000-08:002009-01-16T02:05:25.537-08:00चांदनी चौक टू चाइना घोर संयोगो से भरा सफ़र<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhghC8vEdW6bKmI63w_3wFyTYVQ1pMyA0w-TA0hISJT8IEqJAtfpwThg8U3LIu7qfGLtXr8UNLvD0IlllEA4YwQitcCt_fW72f0bpKshKOjfLCs2WTljFHPKY7xLhL_JDSMPOD0HUMpQIY/s1600-h/still6.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5291824622808077650" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 200px; CURSOR: hand; HEIGHT: 134px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhghC8vEdW6bKmI63w_3wFyTYVQ1pMyA0w-TA0hISJT8IEqJAtfpwThg8U3LIu7qfGLtXr8UNLvD0IlllEA4YwQitcCt_fW72f0bpKshKOjfLCs2WTljFHPKY7xLhL_JDSMPOD0HUMpQIY/s200/still6.jpg" border="0" /></a><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmxDvFgJ0siz7XIPO9Il_cqLjoRZp3ksQieIyX_jrI7QVaQbqycY-MRcQy8cXZRjbC5SOrH9XYoPYOASxw6Q7Du0bW2nPiiNPwJk6p57Y0lIjGEtPyJN3cnh9cARdborjuiP7hGFbsugc/s1600-h/pintu.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5291823571280966338" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 150px; CURSOR: hand; HEIGHT: 200px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmxDvFgJ0siz7XIPO9Il_cqLjoRZp3ksQieIyX_jrI7QVaQbqycY-MRcQy8cXZRjbC5SOrH9XYoPYOASxw6Q7Du0bW2nPiiNPwJk6p57Y0lIjGEtPyJN3cnh9cARdborjuiP7hGFbsugc/s200/pintu.jpg" border="0" /></a><br /><br /><div><span class=""></span><span class=""></span></div><br /><br /><p><span class=""></span></p><em>पंकज रामेन्दू आपको इस हफ्ते सीसी2सी यानी चांदनी चौक से चाइना की यात्रा करने से मना कर रहें हैं---</em><br /><br /><div><br />चांदनी चौक टू चाइना रिलीज़ होने से पहले अक्षय कुमार ने अपनी फिल्म के प्रमोशन के दौरान कहा था कि मेरी फिल्म को दिमाग से नहीं दिल से देखना। तकनीकी तौर पर तो दिल का सोचने में कोई भूमिका नहीं होती है लेकिन अगर हम अक्षय की बात को साहित्यिक नज़रिये से लेकर भी फिल्म को देखते हैं तो इस फिल्म को देखने के लिए दिल भी गवारा नहीं करेगा।<br />चांदनी चौक टू चाइना एक ऐसी फिल्म है जिसे देखते हुए आप लगेगा की आप किसी ठेले पर बिकने वाले उपन्यास को पढ़ रहे हैं जिसमें कहानी को आगे बढ़ाने के लिए घोर संयोगो का सहारा लिया जाता है। यहां तक भी रहता तो ठीक था लेकिन फिल्म में जिस तरह से अक्षय ने अपनी कॉमेडी का सहारा लिया वो ऐसा लगता है जैसे अक्षय को अब सिर्फ ये ही एक्टिंग आती है।<br />एक विदेशी फिल्म के अंदाज़ में शुरू हुई इस फिल्म की कहानी चाइना से शुरू होती है जहां एक लड़ाका ल्यू शैंग जो चाइना को बचाने के लिए हमेशा लड़ता रहता है कि लड़ाई के दौरान मौत हो जाती है और वहां एक गांव पर विलेन होजो का कब्ज़ा हो जाता है, होजो से गांव को बचाने के लिए गांववाले भगवान से प्रार्थना करते हैं और उन्हें मालूम चलता है कि ल्यू शैंग का इंडिया में पुनर्जन्म हुआ है, यहां से फिल्म में अक्षय यानि सिद्धू आते हैं जो कि चांदनी चौक टू चाइना के परांठा वाली गली में एक बावर्ची है औऱ मिथुन यानि दादा के ढाबे पर काम करता, सिद्धू एक ऐसा किरदार है जो मेहनत से ज्यादा किस्मत पर भरोसा करता है औऱ उसका दादा उसे हमेशा समझाता रहता है कि ज़िंदगी में जो होता है वो मेहनत होती है, सिद्धू की जिंदगी में एक और किरदार है वो हे ज्योतिष चॉपस्टिक यानि रणवीर शौरी। वो सिद्धू को बेवकूफ बनाता है औऱ चाइना से आए लोग जो अक्षय को ल्यू शैंग का पुनर्जन्म मानते हैं और उसे होजो का मारने के लिए चाइना ले जाना चाहते हैं उनकी इस बात को अक्षय से छुपा लेता है और ये बताता है कि वो चाइना का एक राजा है, अक्षय इस बात को मानते हुए चाइना जाने के लिए तैयार हो जाता है, इसी बीच एक औऱ किरदार है दीपिका जो एक कंपनी की मॉ़डल है, दीपिका का ही दूसरा रोल है जो चाइनीज़ लुक में दिखी है वो होजो के गैंग में शामिल है। ये दोनो दीपिका बहन है जो चाइनीज़ फादर औऱ इंडियन मदर की संताने है यहां फिर संयोग और दोनों बिछड़ जाती है, फिल्म के अंत में दोनो मिलती है, मिथुन को होजो मार देता है अक्षय को पूरी तरह तोड़ दिया जाता है, दीपिका के पिता अक्षय को मार्शल आर्ट सिखाते हैं, अक्षय यानि सिद्धू जो अपने दादा यानि मिथुन को दिलोजान से चाहता है उसकी मौत हो जाती है लेकिन पूरी फिल्म में अक्षय के चेहरे पर वो दर्द कहीं नज़र नहीं आता है, यहां तक कि मार्शल आर्ट सीखने के दौरान भी सिर्फ कॉमेडी बल्कि यूं कहें ज़बर्दस्ती की कॉमेडी को घुसाया गया है। अक्षय कुमार की कॉमेडी अब उबाने लगी है हर फिल्म में वो एक जैसे ही नज़र आते हैं, रणवीर शौरी जैसे परिपक्व कलाकार भी फिल्म में कुछ जान नहीं डाल पाये, मिथन चक्रवर्ती थोड़ा बहुत प्रभावित करते हैं और दीपिका पादुकोण भी अच्छी एक्टिंग कर गई है, हालांकि फिल्म में दीपिका के चाइनीज़ लुक की तारीफ करनी होगी, जिसमें वो वाकई में चाइनीज़ दिखती है, और अपनी एक्टिंग से दर्शकों को प्रभावित कर जाती है। कुल मिलाकर चांदनी चौक टू चाइना जैकी चैन की एक फिल्म रिवेन्ज की कॉपी लगती है, जिसे मनमोहन देसाई के मसाले के साथ पकाने की कोशिश की गई लेकिन फिल्म में स्क्रिप्ट की जो आंच थी वो सही तरह से नहीं पड़ सकी और कुल मिलाकर ये फिल्म जला हुआ खाना साबित होती है।</div></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-77255370904302516222009-01-01T04:30:00.000-08:002009-01-01T04:37:05.251-08:00साल के पहले हफ्ते फिल्म रिलीज क्यों नहीं होती<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhA_wbAZdHcUBRf1-MU30pSlIa1GJuOhjvIEt7KzjSroZURtNZAhyphenhyphen_hvYfueSuUL9r3ODZVdI2mWYNsSNfUdFZY8U1J-3wNTADWsb8bv6u_qopz1K0cAUj39ksjHHLAA5K-EZXm-8rCKCw/s1600-h/pintu.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5286302945909892802" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 150px; CURSOR: hand; HEIGHT: 200px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhA_wbAZdHcUBRf1-MU30pSlIa1GJuOhjvIEt7KzjSroZURtNZAhyphenhyphen_hvYfueSuUL9r3ODZVdI2mWYNsSNfUdFZY8U1J-3wNTADWsb8bv6u_qopz1K0cAUj39ksjHHLAA5K-EZXm-8rCKCw/s200/pintu.jpg" border="0" /></a><br /><br /><em><span class="">"पंकज</span> रामेंन्दू हर हफ्ते पुलिया पर फिल्म की समीक्षा लिखते है इस हफ्ते कोई फिल्म रिलीज नहीं हुई तो पंकज बता रहे है ऐसा क्यों <span class="">हुआ"</span></em><br /><em><span class=""></span></em><br /><br /><em><span class=""></span></em><br /><p> </p><p> </p><br /><br /><span class="">31 दिसंबर की रात के बाद जो अगली सुबह होती है वो बड़ी अजीब सी होती है थोड़ी अलसायी सी, थोड़ी शात और मुरझायी सी । पूरी दुनिया के साथ फिल्मी सितारें भी झूमते हैं लेकिन ये व्यापारिक झूमना होता है जिसके एवज़ में कुछ मिलता है। असंख्य शराब की बोतलों औऱ मुर्गे की टांगो के साथ साल की अलसायी शुरूआत होती है। इस साल आंतकी हमला हुआ और कुछ जानें चली गई तो सभी ने थोड़ा ग़मज़दा होकर पी। नया साल में हर बात नयी होती है सिर्फ एक बात को छोड़कर वो है थियेटर में लगी फिल्म, हर साल की तरह इस साल भी नये साल का शुक्रवार पुराना ही रहा। ये बॉलीवुड का बहुत पुराना विश्वास है या यूं कहिये की अंधविश्वास है कि साल का पहला हफ्ता अपशगुनी होता है इसलिए कोई भी डायरेक्टर इस हफ्ते अपनी फिल्म रिलीज़ नहीं करता। इस साल जो फिल्म रिलीज़ होंगी उनकी शुरूआत होगी 9 तारीख से यानि जनवरी के दूसरे शुक्रवार से, इस हफ्ते, काश मेरे होते, हॉर्न ओके प्लीज़, प्रेसिडेंट इज़ कमिंग जैसी फिल्में रिलीज़ होंगी। पिछले साल भी यही आलम था हल्ला बोल जैसी फिल्म साल के दूसरे हफ्ते में रिलीज़ हुई अब ये बात और है कि फिल्म फिर भी कुछ कमाल नहीं कर सकी। बॉलीवुड में विश्वास नाम की चीज़ नहीं होती है यहां स्क्रिप्ट चोरी होती है, यहां कलाकार,लेखक, निर्देशक सभी विश्वास करते हैं औऱ उनका विश्वास टूटता है कभी किसी का पैसा रुकता है तो कभी किसी को नहीं मिलता है, लेकिन इस ना विश्वास करने वाले मनोंरंजन उद्योग में अंधविश्वास भरपूर है। कभी कोई अपने सीरियल का नाम के अक्षर से रखता है तो कभी कोई अपनी फिल्म का नामों के अक्षर बढ़ाता है। सितारों के नामों का घालमेल तो आम बात है, इसी के चलते कभी चौराहे पर तोता लेकर बैठने वालों की चल पड़ी है औऱ अब वो सितारों का तोता बैठाते हैं। आंकड़ों के बाज़ीगर ये कहते हैं कि जनवरी के पहले हफ्ते रिलीज हुई फिल्म की नियति फ्लॉप होना ही है। पिछले पंद्रह सालों के आंकड़ो पर नज़र डालें तो साल 2007 में कुड़ियों का है ज़माना, आइ सी यू दोनों फिल्में साल की शुरूआती त्रासदी रही , 2006 में आई जवानी दिवानी और 15 पार्क एवेन्यू ये फिल्में भी पिट गई, 2005 में तीन मध्यम बजट की फिल्म रिलीज़ हुई जिसमें वादा, रोग, और यही है ज़िंदगी शामिल थी, रोग में विदेशी चमड़ी प्रदर्शन हुआ लेकिन थियेटर खाली रहे, इसके अलावा वासु भगनानी की वादा और यही हैं ज़िंदगी कब आई और गईं पता नहीं चला। 2004 में रिलीज़ हुई इश्क है तुमसे जिसने इन अंधविश्वासों को तोड़ा और फिल्म अच्छी चली। इसके अलावा 2003 में तलाश, 2002 में पिता, 2001 में गलियों का बादशाह, 2000 मे आई फिल्म जगत में अपने परफेक्शन के लिए पहचाने जाने वाले आमिर की मेला जिसमें उन्होंने अपने भाई फैज़ल को भी पर्दे पर उतारने की कोशिश की औऱ अनिल कपूर, रजनीकांत की बुलंदी दोनों ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम से गिरी, आमिर का परफेक्शन और अनिल,रजनीकांत का इंप्रेशन भी कुछ कमाल नहीं कर सका। इसके पहले 1999 में सिकंदर सड़क का, 1997 में आस्था, 1996 में हिम्मत, जुर्माना, स्मगलर और 1994 मे आई आंसू बने अंगारे। इस फेहरिस्त पर अगर नज़र डाली जाए तो एक ख़ास बात सामने आती है कि पंद्रह साल में कोई ऐसी फिल्म रिलीज़ नहीं हुई जो हिट हो सकती थी यानि जिन फिल्मों को फ्लॉप होना था वो ही फ्लॉप हुई। या यूं भी कहा जा सकता है कि इन पंद्रह सालों में किसी ने अच्छी फिल्म रिलीज़ करने की हिम्मत ही नहीं जुटाई। धीरे धीरे ये विश्वास अमिट हो गया है कि जनवरी का पहला हफ्ता यानि फ्लॉप। स्कूल में एक कहानी पढ़ाई जाती है, कहानी का शीर्षक है धऱती फट गई। कहानी कुछ इस प्रकार है, एक खरगोश आम के पेड़ के नीचे सोया हुआ रहता है तभी उसे धड़ाम से आवाज़ आती है और वो दुम दबाकर भागता है औऱ साथ में चिल्लाता जाता है धरती फट गई, धरती फट गई, उसकी चिल्लाहट सुनकर औऱ जानवर भी उसके पीछे हो लेते हैं औऱ ये भागभभाग बढ़ती जाती है, तभी एक समझदार जानवर (वो कोई भी हो सकता है) जो संख्या मे कम हैं इसलिए सुने नहीं जाते हैं यही वजह हे कि वो चिल्ला का कर सभी जानवरों को रोकता है औऱ भागने की वजह पूछता है, कई जानवर एक स्वर में बोलते हैं धरती फट गई है तुम भी भागो, समझदार जानवर पूछता है कहां फटी और किसने देखा, उंगली उठते उठते खरगोश पर रुक जाती है वो भी दावे के साथ कहता है कि हां मैंने धड़ाम की आवाज़ सुनी जब मैं आम के पेड़ के नीचे सो रहा था। समझदार सभी को उस पेड़ के नीचे जाने के लिए कहता है कोई तैयार नहीं होता अंतत: वो खुद जाता है वहां पता चलता है कि एक बड़ा भारी आम गिरा पड़ा है, जिसकी आवाज़ ने खरगोश के मन में ये विश्वास जगा दिया था कि धरती फट गई है औऱ ये विश्वास कठोर होते होते अंधविश्वास में तब्दील हो जाता है। यही शायद बॉलीवुड के साथ है जहां विश्वास तो कायम नहीं है लेकिन अंधविश्वास फिल्म को रिलीज़ करने और ना करने या कब करने की बड़ी वजह है।</span>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-23008925429916661442008-12-26T07:08:00.000-08:002008-12-26T07:47:14.958-08:00मुर्गोदोस का डोज़<div><em><font class="transl_class" id="0" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="0" title="Click to correct">पंकज</span></font> <font class="transl_class" id="1" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="1" title="Click to correct">रामेन्दू</span></font> <font class="transl_class" id="2" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="2" title="Click to correct">उभरते</span></font> <font class="transl_class" id="3" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="3" title="Click to correct">हुए</span></font> <font class="transl_class" id="4" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="4" title="Click to correct">फिल्म</span></font> <font class="transl_class" id="5" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="5" title="Click to correct">पत्रकार</span></font> <font class=" transl_class" id="0" title="Click to correct"><font class="transl_class" id="6" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="6" title="Click to correct">है</span></font>,</font> <font class="transl_class" id="7" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="7" title="Click to correct">लेकिन</span></font> <font class="transl_class" id="8" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="8" title="Click to correct">फिल्मी</span></font> <font class="transl_class" id="9" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="9" title="Click to correct">नहीं</span></font> <font class="transl_class" id="10" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="10" title="Click to correct">हैं।</span></font> <font class="transl_class" id="11" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="11" title="Click to correct">उनके</span></font> <font class="transl_class" id="12" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="12" title="Click to correct">लिखे</span></font> <font class="transl_class" id="13" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="13" title="Click to correct">शब्द</span></font> <font class="transl_class" id="14" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="14" title="Click to correct">ग्लैमर</span></font> <font class="transl_class" id="15" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="15" title="Click to correct">से</span></font> <font class="transl_class" id="16" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="16" title="Click to correct">दूर</span></font> <font class="transl_class" id="17" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="17" title="Click to correct">पूरी</span></font> <font class="transl_class" id="18" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="18" title="Click to correct">गंभीरता</span></font> <font class="transl_class" id="19" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="19" title="Click to correct">लिए</span></font> <font class="transl_class" id="20" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="20" title="Click to correct">हुए</span></font> <font class="transl_class" id="21" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="21" title="Click to correct">होते</span></font> <font class="transl_class" id="22" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="22" title="Click to correct">है।</span></font> <font class="transl_class" id="23" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="23" title="Click to correct">वे</span></font> <font class="transl_class" id="24" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="24" title="Click to correct">हमारे</span></font> <font class="transl_class" id="25" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="25" title="Click to correct">साथ</span></font> <font class="transl_class" id="26" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="26" title="Click to correct">अक्सर</span></font> <font class="transl_class" id="27" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="27" title="Click to correct">पुलिया</span></font> <font class="transl_class" id="28" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="28" title="Click to correct">पर</span></font> <font class="transl_class" id="29" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="29" title="Click to correct">बैठते</span></font> <font class="transl_class" id="30" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="30" title="Click to correct">है।</span></font> <font class="transl_class" id="31" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="31" title="Click to correct">अब</span></font> <font class="transl_class" id="32" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="32" title="Click to correct">से</span></font> <font class="transl_class" id="33" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="33" title="Click to correct">हर</span></font> <font class="transl_class" id="34" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="34" title="Click to correct">हफ्ते</span></font> <font class="transl_class" id="35" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="35" title="Click to correct">नई</span></font> <font class="transl_class" id="36" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="36" title="Click to correct">रिलीज</span></font> <font class="transl_class" id="37" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="37" title="Click to correct">फिल्म</span></font> <font class="transl_class" id="38" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="38" title="Click to correct">की</span></font> <font class="transl_class" id="39" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="39" title="Click to correct">समीक्षा</span></font> <font class="transl_class" id="40" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="40" title="Click to correct">पंकज</span></font> <font class="transl_class" id="41" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="41" title="Click to correct">पुलिया</span></font> <font class=" transl_class" id="3" title="Click to correct"><font class="transl_class" id="42" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="42" title="Click to correct">पर</span></font> </font><font class="transl_class" id="43" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="43" title="Click to correct">करेंगे।</span></font> <font class="transl_class" id="44" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="44" title="Click to correct">बाजार</span></font> <font class="transl_class" id="45" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="45" title="Click to correct">की</span></font> <font class="transl_class" id="46" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="46" title="Click to correct">किसी</span></font> <font class="transl_class" id="47" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="47" title="Click to correct">भी</span></font> <font class="transl_class" id="48" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="48" title="Click to correct">ताकत</span></font> <font class="transl_class" id="49" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="49" title="Click to correct">से</span></font> <font class="transl_class" id="50" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="50" title="Click to correct">अप्रभावित</span></font> <font class="transl_class" id="51" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="51" title="Click to correct">समीक्षा।</span></font> <font class=" transl_class" id="4" title="Click to correct"><font class="transl_class" id="52" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="52" title="Click to correct">इस</span></font></font> <font class="transl_class" id="53" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="53" title="Click to correct">हफ्ते</span></font> <font class=" transl_class" id="5" title="Click to correct"><font class="transl_class" id="54" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="54" title="Click to correct">गजनी</span></font> <font class="transl_class" id="55" title="Click to correct"><span class="transl_class" id="55" title="Click to correct">।</span></font></font></em></div><br />
<br /><p></p><br />
<br /><p><br /><span class="transl_class" id="56" title="Click to correct">क्वांटिटी</span> <span class="transl_class" id="57" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="58" title="Click to correct">क्वालिटी</span> <span class="transl_class" id="59" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="60" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="61" title="Click to correct">अंतर</span> <span class="transl_class" id="62" title="Click to correct">होता</span> <span class="transl_class" id="63" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="64" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="65" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="66" title="Click to correct">किसी</span> <span class="transl_class" id="67" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="68" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="69" title="Click to correct">सीखी</span> <span class="transl_class" id="70" title="Click to correct">जा</span> <span class="transl_class" id="71" title="Click to correct">सकती</span> <span class="transl_class" id="72" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="73" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="74" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="75" title="Click to correct">हैं</span> <span class="transl_class" id="76" title="Click to correct">आमिर</span> <span class="transl_class" id="77" title="Click to correct">ख़ान</span> <span class="transl_class" id="78" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="79" title="Click to correct">साल</span> <span class="transl_class" id="80" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="81" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="82" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="83" title="Click to correct">आना</span> <span class="transl_class" id="84" title="Click to correct">औऱ</span> <span class="transl_class" id="85" title="Click to correct">छा</span> <span class="transl_class" id="86" title="Click to correct">जाना</span> <span class="transl_class" id="87" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="88" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="89" title="Click to correct">आमिर</span> <span class="transl_class" id="90" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="91" title="Click to correct">परफेक्शन</span> <span class="transl_class" id="92" title="Click to correct">है।अमिताभ</span> <span class="transl_class" id="93" title="Click to correct">बच्चन</span> <span class="transl_class" id="94" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="95" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="96" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="97" title="Click to correct">अमर</span> <span class="transl_class" id="98" title="Click to correct">अकबर</span> <span class="transl_class" id="99" title="Click to correct">एंथनी</span>, <span class="transl_class" id="100" title="Click to correct">उसमें</span> <span class="transl_class" id="101" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="102" title="Click to correct">अमिताभ</span> <span class="transl_class" id="103" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="104" title="Click to correct">लड़ाई</span> <span class="transl_class" id="105" title="Click to correct">विनोद</span> <span class="transl_class" id="106" title="Click to correct">खन्ना</span> <span class="transl_class" id="107" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="108" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="109" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="110" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="111" title="Click to correct">विनोद</span> <span class="transl_class" id="112" title="Click to correct">खन्ना</span> <span class="transl_class" id="113" title="Click to correct">उनकी</span> <span class="transl_class" id="114" title="Click to correct">खूब</span> <span class="transl_class" id="115" title="Click to correct">अच्छी</span> <span class="transl_class" id="116" title="Click to correct">धुनाई</span> <span class="transl_class" id="117" title="Click to correct">करते</span> <span class="transl_class" id="118" title="Click to correct">हैं</span>, <span class="transl_class" id="119" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="120" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="121" title="Click to correct">अमिताभ</span> <span class="transl_class" id="122" title="Click to correct">विनोद</span> <span class="transl_class" id="123" title="Click to correct">खन्ना</span> <span class="transl_class" id="124" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="125" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="126" title="Click to correct">डायलॉग</span> <span class="transl_class" id="127" title="Click to correct">देते</span> <span class="transl_class" id="128" title="Click to correct">हैं</span>, <span class="transl_class" id="129" title="Click to correct">तुमने</span> <span class="transl_class" id="130" title="Click to correct">अपुन</span> <span class="transl_class" id="131" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="132" title="Click to correct">इतना</span> <span class="transl_class" id="133" title="Click to correct">मारा</span> <span class="transl_class" id="134" title="Click to correct">अपुन</span> <span class="transl_class" id="135" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="136" title="Click to correct">तुम</span> <span class="transl_class" id="137" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="138" title="Click to correct">दो</span> <span class="transl_class" id="139" title="Click to correct">मारा</span> <span class="transl_class" id="140" title="Click to correct">पन</span> <span class="transl_class" id="141" title="Click to correct">सॉलिड</span> <span class="transl_class" id="142" title="Click to correct">मारा</span> <span class="transl_class" id="143" title="Click to correct">ना।</span> <span class="transl_class" id="144" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="145" title="Click to correct">सॉलिड</span> <span class="transl_class" id="146" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="147" title="Click to correct">डोज़</span> <span class="transl_class" id="148" title="Click to correct">देना</span> <span class="transl_class" id="149" title="Click to correct">आमिर</span> <span class="transl_class" id="150" title="Click to correct">बहुत</span> <span class="transl_class" id="151" title="Click to correct">खूब</span> <span class="transl_class" id="152" title="Click to correct">जानते</span> <span class="transl_class" id="153" title="Click to correct">हैं।</span> <span class="transl_class" id="154" title="Click to correct">गजनी</span> <span class="transl_class" id="155" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="156" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="157" title="Click to correct">साथ</span> <span class="transl_class" id="158" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="159" title="Click to correct">ऐसा</span> <span class="transl_class" id="160" title="Click to correct">ही</span>, <span class="transl_class" id="161" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="162" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="163" title="Click to correct">सिर्फ</span> <span class="transl_class" id="164" title="Click to correct">औऱ</span> <span class="transl_class" id="165" title="Click to correct">सिर्फ</span> <span class="transl_class" id="166" title="Click to correct">आमिर</span> <span class="transl_class" id="167" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="168" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="169" title="Click to correct">है।</span> <span class="transl_class" id="170" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="171" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="172" title="Click to correct">पहली</span> <span class="transl_class" id="173" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="174" title="Click to correct">आमिर</span> <span class="transl_class" id="175" title="Click to correct">ने</span> <span class="transl_class" id="176" title="Click to correct">अपने</span> <span class="transl_class" id="177" title="Click to correct">भावों</span> <span class="transl_class" id="178" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="179" title="Click to correct">भरपूर</span> <span class="transl_class" id="180" title="Click to correct">प्रयोग</span> <span class="transl_class" id="181" title="Click to correct">किया</span> <span class="transl_class" id="182" title="Click to correct">है।</span> <span class="transl_class" id="183" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="184" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="185" title="Click to correct">कहानी</span> <span class="transl_class" id="186" title="Click to correct">शुरू</span> <span class="transl_class" id="187" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="188" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="189" title="Click to correct">शॉर्ट</span> <span class="transl_class" id="190" title="Click to correct">टर्म</span> <span class="transl_class" id="191" title="Click to correct">मेमोरी</span> <span class="transl_class" id="192" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="193" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="194" title="Click to correct">पेशेंट</span> <span class="transl_class" id="195" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="196" title="Click to correct">जिसे</span> <span class="transl_class" id="197" title="Click to correct">हर</span> 15 <span class="transl_class" id="198" title="Click to correct">मिनिट</span> <span class="transl_class" id="199" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="200" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="201" title="Click to correct">याद</span> <span class="transl_class" id="202" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="203" title="Click to correct">रहता</span> <span class="transl_class" id="204" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="205" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="206" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="207" title="Click to correct">कौन</span> <span class="transl_class" id="208" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="209" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="210" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="211" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="212" title="Click to correct">रहा</span> <span class="transl_class" id="213" title="Click to correct">है।</span> <span class="transl_class" id="214" title="Click to correct">अपनी</span> <span class="transl_class" id="215" title="Click to correct">याददाश्त</span> <span class="transl_class" id="216" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="217" title="Click to correct">काबिज़</span> <span class="transl_class" id="218" title="Click to correct">रखने</span> <span class="transl_class" id="219" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="220" title="Click to correct">लिए</span> <span class="transl_class" id="221" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="222" title="Click to correct">अपने</span> <span class="transl_class" id="223" title="Click to correct">शरीर</span> <span class="transl_class" id="224" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="225" title="Click to correct">नं</span> <span class="transl_class" id="226" title="Click to correct">औऱ</span> <span class="transl_class" id="227" title="Click to correct">एड्रेस</span> <span class="transl_class" id="228" title="Click to correct">गोद</span> <span class="transl_class" id="229" title="Click to correct">लेता</span> <span class="transl_class" id="230" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="231" title="Click to correct">यही</span> <span class="transl_class" id="232" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="233" title="Click to correct">उसके</span> <span class="transl_class" id="234" title="Click to correct">घर</span> <span class="transl_class" id="235" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="236" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="237" title="Click to correct">लोगों</span> <span class="transl_class" id="238" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="239" title="Click to correct">तस्वीरें</span> <span class="transl_class" id="240" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="241" title="Click to correct">नक्शे</span> <span class="transl_class" id="242" title="Click to correct">लगे</span> <span class="transl_class" id="243" title="Click to correct">रहते</span> <span class="transl_class" id="244" title="Click to correct">हैं</span> <span class="transl_class" id="245" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="246" title="Click to correct">उसे</span> <span class="transl_class" id="247" title="Click to correct">याद</span> <span class="transl_class" id="248" title="Click to correct">दिलाते</span> <span class="transl_class" id="249" title="Click to correct">हैं</span> <span class="transl_class" id="250" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="251" title="Click to correct">उसका</span> <span class="transl_class" id="252" title="Click to correct">अगला</span> <span class="transl_class" id="253" title="Click to correct">टास्क</span> <span class="transl_class" id="254" title="Click to correct">क्या</span> <span class="transl_class" id="255" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="256" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="257" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="258" title="Click to correct">कहानी</span> <span class="transl_class" id="259" title="Click to correct">आगे</span> <span class="transl_class" id="260" title="Click to correct">बढ़ती</span> <span class="transl_class" id="261" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="262" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="263" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="264" title="Click to correct">पुलिस</span> <span class="transl_class" id="265" title="Click to correct">इंसपेक्टर</span> <span class="transl_class" id="266" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="267" title="Click to correct">हाथ</span> <span class="transl_class" id="268" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="269" title="Click to correct">इस</span> <span class="transl_class" id="270" title="Click to correct">पेशेंट</span> <span class="transl_class" id="271" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="272" title="Click to correct">लिखी</span> <span class="transl_class" id="273" title="Click to correct">हुई</span> <span class="transl_class" id="274" title="Click to correct">डायरी</span> <span class="transl_class" id="275" title="Click to correct">लगती</span> <span class="transl_class" id="276" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="277" title="Click to correct">जिससे</span> <span class="transl_class" id="278" title="Click to correct">मालूम</span> <span class="transl_class" id="279" title="Click to correct">चलता</span> <span class="transl_class" id="280" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="281" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="282" title="Click to correct">पेशेंट</span> <span class="transl_class" id="283" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="284" title="Click to correct">नाम</span> <span class="transl_class" id="285" title="Click to correct">संजय</span> <span class="transl_class" id="286" title="Click to correct">सिंघानिया</span> <span class="transl_class" id="287" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="288" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="289" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="290" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="291" title="Click to correct">बहुत</span> <span class="transl_class" id="292" title="Click to correct">बड़ी</span> <span class="transl_class" id="293" title="Click to correct">मौबाइल</span> <span class="transl_class" id="294" title="Click to correct">कंपनी</span> <span class="transl_class" id="295" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="296" title="Click to correct">मालिक</span> <span class="transl_class" id="297" title="Click to correct">रहता</span> <span class="transl_class" id="298" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="299" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="300" title="Click to correct">संयोग</span> <span class="transl_class" id="301" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="302" title="Click to correct">उसकी</span> <span class="transl_class" id="303" title="Click to correct">मुलाकात</span> <span class="transl_class" id="304" title="Click to correct">कल्पना</span> (<span class="transl_class" id="305" title="Click to correct">असिन</span>) <span class="transl_class" id="306" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="307" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="308" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="309" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="310" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="311" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="312" title="Click to correct">स्ट्रगलिंग</span> <span class="transl_class" id="313" title="Click to correct">मॉडल</span> <span class="transl_class" id="314" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="315" title="Click to correct">कुछ</span> <span class="transl_class" id="316" title="Click to correct">मुलाकात</span> <span class="transl_class" id="317" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="318" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="319" title="Click to correct">दोनों</span> <span class="transl_class" id="320" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="321" title="Click to correct">प्यार</span> <span class="transl_class" id="322" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="323" title="Click to correct">जाता</span> <span class="transl_class" id="324" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="325" title="Click to correct">लेकिन</span> <span class="transl_class" id="326" title="Click to correct">संजय</span> <span class="transl_class" id="327" title="Click to correct">कल्पना</span> <span class="transl_class" id="328" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="329" title="Click to correct">अपनी</span> <span class="transl_class" id="330" title="Click to correct">आइडेंटिटि</span> <span class="transl_class" id="331" title="Click to correct">छुपा</span> <span class="transl_class" id="332" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="333" title="Click to correct">रखता</span> <span class="transl_class" id="334" title="Click to correct">है।</span> <span class="transl_class" id="335" title="Click to correct">कहानी</span> <span class="transl_class" id="336" title="Click to correct">तब</span> <span class="transl_class" id="337" title="Click to correct">नया</span> <span class="transl_class" id="338" title="Click to correct">मोड़</span> <span class="transl_class" id="339" title="Click to correct">लेती</span> <span class="transl_class" id="340" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="341" title="Click to correct">जब</span> <span class="transl_class" id="342" title="Click to correct">असिन</span> <span class="transl_class" id="343" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="344" title="Click to correct">बच्चो</span> <span class="transl_class" id="345" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="346" title="Click to correct">अंग</span> <span class="transl_class" id="347" title="Click to correct">बेचने</span> <span class="transl_class" id="348" title="Click to correct">वाले</span> <span class="transl_class" id="349" title="Click to correct">ग्रुप</span> <span class="transl_class" id="350" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="351" title="Click to correct">भांडाफोड़</span> <span class="transl_class" id="352" title="Click to correct">करती</span> <span class="transl_class" id="353" title="Click to correct">है।</span> <span class="transl_class" id="354" title="Click to correct">वहीं</span> <span class="transl_class" id="355" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="356" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="357" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="358" title="Click to correct">विलेन</span> <span class="transl_class" id="359" title="Click to correct">यानि</span> <span class="transl_class" id="360" title="Click to correct">गजनी</span> <span class="transl_class" id="361" title="Click to correct">धर्मात्मा</span> (<span class="transl_class" id="362" title="Click to correct">प्रदीप</span> <span class="transl_class" id="363" title="Click to correct">रावत</span>) <span class="transl_class" id="364" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="365" title="Click to correct">एंट्री</span> <span class="transl_class" id="366" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="367" title="Click to correct">है।</span> <span class="transl_class" id="368" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="369" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="370" title="Click to correct">असिन</span> <span class="transl_class" id="371" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="372" title="Click to correct">मर्डर</span> <span class="transl_class" id="373" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="374" title="Click to correct">सीन</span> <span class="transl_class" id="375" title="Click to correct">बहुत</span> <span class="transl_class" id="376" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="377" title="Click to correct">अच्छा</span> <span class="transl_class" id="378" title="Click to correct">बन</span> <span class="transl_class" id="379" title="Click to correct">पड़ा</span> <span class="transl_class" id="380" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="381" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="382" title="Click to correct">लगता</span> <span class="transl_class" id="383" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="384" title="Click to correct">कि</span> <span class="transl_class" id="385" title="Click to correct">डायरेक्टर</span> <span class="transl_class" id="386" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="387" title="Click to correct">डर</span> <span class="transl_class" id="388" title="Click to correct">पैदा</span> <span class="transl_class" id="389" title="Click to correct">करना</span> <span class="transl_class" id="390" title="Click to correct">चाहता</span> <span class="transl_class" id="391" title="Click to correct">था</span> <span class="transl_class" id="392" title="Click to correct">उसने</span> <span class="transl_class" id="393" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="394" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="395" title="Click to correct">दिखाया।</span> <span class="transl_class" id="396" title="Click to correct">असिन</span> <span class="transl_class" id="397" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="398" title="Click to correct">एक्टिंग</span> <span class="transl_class" id="399" title="Click to correct">किसी</span> <span class="transl_class" id="400" title="Click to correct">किसी</span> <span class="transl_class" id="401" title="Click to correct">जगह</span> <span class="transl_class" id="402" title="Click to correct">बहुत</span> <span class="transl_class" id="403" title="Click to correct">ही</span> <span class="transl_class" id="404" title="Click to correct">लाजवाब</span> <span class="transl_class" id="405" title="Click to correct">नज़र</span> <span class="transl_class" id="406" title="Click to correct">आती</span> <span class="transl_class" id="407" title="Click to correct">है।</span> <span class="transl_class" id="408" title="Click to correct">हालांकि</span> <span class="transl_class" id="409" title="Click to correct">विलेन</span> <span class="transl_class" id="410" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="411" title="Click to correct">तौर</span> <span class="transl_class" id="412" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="413" title="Click to correct">प्रदीप</span> <span class="transl_class" id="414" title="Click to correct">रावत</span> <span class="transl_class" id="415" title="Click to correct">बहुत</span> <span class="transl_class" id="416" title="Click to correct">ज्यादा</span> <span class="transl_class" id="417" title="Click to correct">इंप्रेस</span> <span class="transl_class" id="418" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="419" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="420" title="Click to correct">पाते</span> <span class="transl_class" id="421" title="Click to correct">हैं।</span> <span class="transl_class" id="422" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="423" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="424" title="Click to correct">क्लाइमेक्स</span> <span class="transl_class" id="425" title="Click to correct">बेहतर</span> <span class="transl_class" id="426" title="Click to correct">बनाया</span> <span class="transl_class" id="427" title="Click to correct">गया</span> <span class="transl_class" id="428" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="429" title="Click to correct">लेकिन</span> <span class="transl_class" id="430" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="431" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="432" title="Click to correct">साउथ</span> <span class="transl_class" id="433" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="434" title="Click to correct">फिल्मों</span> <span class="transl_class" id="435" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="436" title="Click to correct">टच</span> <span class="transl_class" id="437" title="Click to correct">पूरी</span> <span class="transl_class" id="438" title="Click to correct">तरह</span> <span class="transl_class" id="439" title="Click to correct">नज़र</span> <span class="transl_class" id="440" title="Click to correct">आता</span> <span class="transl_class" id="441" title="Click to correct">है।अगर</span> <span class="transl_class" id="442" title="Click to correct">म्यूज़िक</span> <span class="transl_class" id="443" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="444" title="Click to correct">बात</span> <span class="transl_class" id="445" title="Click to correct">करें</span> <span class="transl_class" id="446" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="447" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="448" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="449" title="Click to correct">गाने</span> <span class="transl_class" id="450" title="Click to correct">ज़बर्दस्ती</span> <span class="transl_class" id="451" title="Click to correct">डाले</span> <span class="transl_class" id="452" title="Click to correct">हुए</span> <span class="transl_class" id="453" title="Click to correct">लगते</span> <span class="transl_class" id="454" title="Click to correct">हैं</span>, <span class="transl_class" id="455" title="Click to correct">जो</span> <span class="transl_class" id="456" title="Click to correct">स्टोरी</span> <span class="transl_class" id="457" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="458" title="Click to correct">हिसाब</span> <span class="transl_class" id="459" title="Click to correct">से</span> <span class="transl_class" id="460" title="Click to correct">कहीं</span> <span class="transl_class" id="461" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="462" title="Click to correct">फिट</span> <span class="transl_class" id="463" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="464" title="Click to correct">बैठते</span> <span class="transl_class" id="465" title="Click to correct">हैं</span> <span class="transl_class" id="466" title="Click to correct">हालांकि</span> <span class="transl_class" id="467" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="468" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="469" title="Click to correct">बैकग्राउंड</span> <span class="transl_class" id="470" title="Click to correct">स्कोर</span> <span class="transl_class" id="471" title="Click to correct">काफी</span> <span class="transl_class" id="472" title="Click to correct">बेहतर</span> <span class="transl_class" id="473" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="474" title="Click to correct">औऱ</span> <span class="transl_class" id="475" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="476" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="477" title="Click to correct">थीम</span> <span class="transl_class" id="478" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="479" title="Click to correct">सपोर्ट</span> <span class="transl_class" id="480" title="Click to correct">करता</span> <span class="transl_class" id="481" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="482" title="Click to correct">गाने</span> <span class="transl_class" id="483" title="Click to correct">खूबसूरत</span> <span class="transl_class" id="484" title="Click to correct">हैं</span> <span class="transl_class" id="485" title="Click to correct">लेकिन</span> <span class="transl_class" id="486" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="487" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="488" title="Click to correct">जगह</span> <span class="transl_class" id="489" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="490" title="Click to correct">बना</span> <span class="transl_class" id="491" title="Click to correct">पाते</span> <span class="transl_class" id="492" title="Click to correct">हैं।</span> <span class="transl_class" id="493" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="494" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="495" title="Click to correct">स्टोरी</span> <span class="transl_class" id="496" title="Click to correct">कहीं</span> <span class="transl_class" id="497" title="Click to correct">लॉजिकल</span> <span class="transl_class" id="498" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="499" title="Click to correct">लगती</span> <span class="transl_class" id="500" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="501" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="502" title="Click to correct">फर्स्ट</span> <span class="transl_class" id="503" title="Click to correct">हॉफ</span> <span class="transl_class" id="504" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="505" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="506" title="Click to correct">दर्शकों</span> <span class="transl_class" id="507" title="Click to correct">को</span> <span class="transl_class" id="508" title="Click to correct">घड़ी</span> <span class="transl_class" id="509" title="Click to correct">देखने</span> <span class="transl_class" id="510" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="511" title="Click to correct">मजबूर</span> <span class="transl_class" id="512" title="Click to correct">कर</span> <span class="transl_class" id="513" title="Click to correct">देता</span> <span class="transl_class" id="514" title="Click to correct">है।</span> <span class="transl_class" id="515" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="516" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="517" title="Click to correct">स्क्रीनप्ले</span> <span class="transl_class" id="518" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="519" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="520" title="Click to correct">टूटता</span> <span class="transl_class" id="521" title="Click to correct">सा</span> <span class="transl_class" id="522" title="Click to correct">लगता</span> <span class="transl_class" id="523" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="524" title="Click to correct">लेकिन</span> <span class="transl_class" id="525" title="Click to correct">सेंकेंड</span> <span class="transl_class" id="526" title="Click to correct">हॉफ</span> <span class="transl_class" id="527" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="528" title="Click to correct">बाद</span> <span class="transl_class" id="529" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="530" title="Click to correct">स्पीड</span> <span class="transl_class" id="531" title="Click to correct">पकड़ती</span> <span class="transl_class" id="532" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="533" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="534" title="Click to correct">स्टोरी</span> <span class="transl_class" id="535" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="536" title="Click to correct">अपनी</span> <span class="transl_class" id="537" title="Click to correct">ग्रिप</span> <span class="transl_class" id="538" title="Click to correct">बना</span> <span class="transl_class" id="539" title="Click to correct">लेती</span> <span class="transl_class" id="540" title="Click to correct">है।कुल</span> <span class="transl_class" id="541" title="Click to correct">मिलाकर</span> <span class="transl_class" id="542" title="Click to correct">अगर</span> <span class="transl_class" id="543" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="544" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="545" title="Click to correct">लेंग्थ</span> <span class="transl_class" id="546" title="Click to correct">थोड़ी</span> <span class="transl_class" id="547" title="Click to correct">छोटी</span> <span class="transl_class" id="548" title="Click to correct">होती</span> <span class="transl_class" id="549" title="Click to correct">तो</span> <span class="transl_class" id="550" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="551" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="552" title="Click to correct">भी</span> <span class="transl_class" id="553" title="Click to correct">बेहतर</span> <span class="transl_class" id="554" title="Click to correct">हो</span> <span class="transl_class" id="555" title="Click to correct">सकती</span> <span class="transl_class" id="556" title="Click to correct">थी।</span> <span class="transl_class" id="557" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="558" title="Click to correct">में</span> <span class="transl_class" id="559" title="Click to correct">जिया</span> <span class="transl_class" id="560" title="Click to correct">खान</span> <span class="transl_class" id="561" title="Click to correct">का</span> <span class="transl_class" id="562" title="Click to correct">रोल</span> <span class="transl_class" id="563" title="Click to correct">काफी</span> <span class="transl_class" id="564" title="Click to correct">सीमित</span> <span class="transl_class" id="565" title="Click to correct">है</span> <span class="transl_class" id="566" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="567" title="Click to correct">वो</span> <span class="transl_class" id="568" title="Click to correct">अपने</span> <span class="transl_class" id="569" title="Click to correct">उतने</span> <span class="transl_class" id="570" title="Click to correct">समय</span> <span class="transl_class" id="571" title="Click to correct">मे</span> <span class="transl_class" id="572" title="Click to correct">कोई</span> <span class="transl_class" id="573" title="Click to correct">ख़ास</span> <span class="transl_class" id="574" title="Click to correct">प्रभाव</span> <span class="transl_class" id="575" title="Click to correct">नहीं</span> <span class="transl_class" id="576" title="Click to correct">डाल</span> <span class="transl_class" id="577" title="Click to correct">पाती</span> <span class="transl_class" id="578" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="579" title="Click to correct">औऱ</span> <span class="transl_class" id="580" title="Click to correct">उन्हें</span> <span class="transl_class" id="581" title="Click to correct">अभी</span> <span class="transl_class" id="582" title="Click to correct">हिंदी</span> <span class="transl_class" id="583" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="584" title="Click to correct">काफी</span> <span class="transl_class" id="585" title="Click to correct">मेहनत</span> <span class="transl_class" id="586" title="Click to correct">करनी</span> <span class="transl_class" id="587" title="Click to correct">होगी।</span> <span class="transl_class" id="588" title="Click to correct">प्रसून</span> <span class="transl_class" id="589" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="590" title="Click to correct">लिरिक्स</span> <span class="transl_class" id="591" title="Click to correct">औसत</span> <span class="transl_class" id="592" title="Click to correct">है</span>, <span class="transl_class" id="593" title="Click to correct">लेकिन</span> <span class="transl_class" id="594" title="Click to correct">रविचंद्रन</span> <span class="transl_class" id="595" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="596" title="Click to correct">सिनेमोटोग्राफी</span> <span class="transl_class" id="597" title="Click to correct">कमाल</span> <span class="transl_class" id="598" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="599" title="Click to correct">है।</span> <span class="transl_class" id="600" title="Click to correct">कुल</span> <span class="transl_class" id="601" title="Click to correct">मिलाकर</span> <span class="transl_class" id="602" title="Click to correct">आमिर</span> <span class="transl_class" id="603" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="604" title="Click to correct">लाजवाब</span> <span class="transl_class" id="605" title="Click to correct">एक्टिंग</span> <span class="transl_class" id="606" title="Click to correct">के</span> <span class="transl_class" id="607" title="Click to correct">साथ</span> <span class="transl_class" id="608" title="Click to correct">ये</span> <span class="transl_class" id="609" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="610" title="Click to correct">औसत</span> <span class="transl_class" id="611" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="612" title="Click to correct">है।</span> <span class="transl_class" id="613" title="Click to correct">जिसे</span> <span class="transl_class" id="614" title="Click to correct">एक</span> <span class="transl_class" id="615" title="Click to correct">बार</span> <span class="transl_class" id="616" title="Click to correct">देखा</span> <span class="transl_class" id="617" title="Click to correct">जा</span> <span class="transl_class" id="618" title="Click to correct">सकता</span> <span class="transl_class" id="619" title="Click to correct">है।</span> <span class="transl_class" id="620" title="Click to correct">इस</span> <span class="transl_class" id="621" title="Click to correct">फिल्म</span> <span class="transl_class" id="622" title="Click to correct">को</span> 3 <span class="transl_class" id="623" title="Click to correct">स्टार</span> <span class="transl_class" id="624" title="Click to correct">और</span> <span class="transl_class" id="625" title="Click to correct">आमिर</span> <span class="transl_class" id="626" title="Click to correct">की</span> <span class="transl_class" id="627" title="Click to correct">एक्टिंग</span> <span class="transl_class" id="628" title="Click to correct">पर</span> <span class="transl_class" id="629" title="Click to correct">जोरदार</span> <span class="transl_class" id="630" title="Click to correct">ताली</span> <span class="transl_class" id="631" title="Click to correct">।</span><br /></p>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-22260061859014314262008-12-20T08:10:00.000-08:002008-12-20T08:33:32.176-08:00एक ख़बर न्यूज़ रूम से<em><span class=""></span></em><br /><em><span class=""></span></em><br /><em>आपने पशुपति जी को पढ़ा, यूं ही ब्लाग की दुनियां में घूमते हुए उनके "खोयाचांद" ब्लाग पर यह कविता थी। यह सिर्फ कविता ही नहीं, मीडिया से जुड़े हर शक्स की आपबीती सी लगती है। पिछले साल लिखी गई इन लाइनों में घटना भले पुरानी हो, मर्म बारहमासी है। पशुपति जी वॉयस आफ इंडिया से जुड़े हैं।</em><br /><br /><br />किरण बेदी नाराज़ है<br />ख़बर आयी और न्यूज़ रूम में मच गयी हलचल<br />बॉस ने कहा - तान दो ख़बर<br />ख़बर तन गयी ...<br />बेदी नाराज़ हैं कि<br />उन्हें दिल्ली पुलिस प्रमुख नहीं बनाया गया<br />बेदी नाराज़ हैं कि<br />उनकी जगह किसी जूनियर को दिया गया प्रमोशन<br />बेदी नाराज़ हैं कि<br />प्रधानमंत्री ने उनका भरोसा तोड़ दिया<br />बेदी नाराज़ हैं कि<br />इस तंत्र में अब काबिलियत की जरूरत नहीं<br />करनी होती है तिकड़म<br />चीख - चीख कर बार-बार बताना होता है कि<br />मैं भी हूँ कतार में ।<br />चैनल पर ये ख़बर दिन भर चलती रही मानो<br />बेदी कि लड़ाई का जिम्मा चैनलों ने उठा लिया।<br />शाम होते- होते उसी न्यूज़ रूम में बाँटीं गयी कुछ चिट्ठियां<br />बंद लिफाफों में<br />कुछ के चेहरे खिले तो<br />कुछ थे नाराज़ ,<br />अब बारी खबरें तानने वालों की थी<br />यहाँ भी तंत्र ने अपना कमाल दिखा दिया था<br />बस फर्क था तो इतना कि<br />सब कुछ ऑफ़ स्क्रीन था<br />हताशा , मायूसी और गुस्सा...<br />अब किसी बॉस को फिक्र नहीं थी<br />क्योंकि उन्हीं ने बाँटीं थीं रेवडी<br />आंकी थी काबिलियत ।<br />कुछ ने थोडी भड़ास निकाली<br />कुछ चले गए छुट्टी पर ।<br />लेकिन यहाँ कोई बेदी नहीं थी<br />कि चैनल पर बन जाती ख़बर<br />कि बेदी तीन महीने की छुट्टी पर<br />कि मच जाता हड़कंप<br />कि गृहमंत्री के साथ हो जाती मीटिंग<br />कि मिल जाती थोडी दिलासा ।<br />ये चैनल है<br />जहाँ चलती हैं खबरें<br />हमेशा यूँ ही दौड़ती -भागती<br />न्यूज़ रूम की खबरें<br />कब कुचल जाती हैं<br />या कुचल दी जाती हैं<br />पता नहीं .....Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-24341647457322352722008-12-18T07:39:00.000-08:002008-12-18T08:42:09.133-08:00ना कागज़ की कश्ती, ना बारिश का पानी<a href="http://1.bp.blogspot.com/_rg1wjA9GbVg/SUp7xN6o9oI/AAAAAAAAADk/fmQa2t6QSSw/s1600-h/abhay"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5281169598524749442" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; WIDTH: 156px; CURSOR: hand; HEIGHT: 200px" alt="" src="http://1.bp.blogspot.com/_rg1wjA9GbVg/SUp7xN6o9oI/AAAAAAAAADk/fmQa2t6QSSw/s200/abhay%27s+photo.JPG" border="0" /></a><br /><div><em><span class=""></span></em><br /><em><span class=""></span></em><br /><em>मुबंई हमलों से ध्यान बटाने के सरकारी प्रयास शुरु हो चुके है, पहली कोशिश महाराष्ट्र सरकार ने की है। राज्य सरकार के श्रम मंत्रालय ने बालिका वधु, कृष्णा, उतरन जैसे कई सीरियलों को बच्चों से ज्यादा काम करवाने को लेकर नोटिस जारी किया है। महाराष्ट्र में बाल श्रमिकों की अच्छी खासी तादात है लेकिन मीडिया मोह के चलते सरकार को सेलीब्रिटी बच्चे ही नजर आए। लेकिन यहां हम महाराष्ट्र सरकार के इस नोटिस के बहाने बात करने की कोशिश कर रहे है कि किस तरह बाजार ने बचपन पर कब्जा कर लिया है। मां बाप इस बाजार के शिकार है, सबको अपना बच्चा नम्बर वन ही चाहिए टू नहीं। मेरा यह लेख जनसत्ता में 22 अक्टूबर को प्रकाशित हुआ था। इस नोटिस की आड़ में फिर आपसे सांझा कर रहा हूं।</em><br /><br /><br /><br />टीवी पर मुंबई वर्ली से मटकी फोड़ का सीधा प्रसारण चल रहा था। गोविंदाओं ने घेरे बनाकर पिरामिड तैयार कर लिया था अंत में एक छोटे से बच्चे को कृष्ण का रुप धर सबसे ऊपर चढाने की कोशिश की जा रही थी। इतनी भी़ड़ हो हल्ला और ऊचाई देखकर बच्चा डर गया और जार जार रोने लगा। वहां मौजूद लाखों लोग वैसे ही उस तमाशे को देख रहे थे जैसे हम घर में बैठकर टीवी पर। टीवी कैमरा उस बच्चे पर फोकस किये हुए थे। सभी तमाशे का मजा ले रहे थे।हर कोई चाह रहा था बाल कृष्ण ऊपर तक पहुंच कर उन्हे दर्शन दे। चारों तरफ चीख चिल्लाहट का माहौल, कानफोड़ू माहौल में रिपोर्टर चीख-चीख कर ताज़ा जानकारी देने की कोशिश कर रही थी। इस मटकी फोड़ प्रतियोगिता में शामिल लोगो का घ्यान बच्चे से ज्यादा वहां लगे कारपोरेट बैनरों पर था जिन पर ईनाम की राशि लिखी थी। यही तो वो खास चीज थी जिसने बच्चे को इतनी ऊंचाई पर पहुंचा दिया था, मां बाप की इच्छा थी कि उनका बेटा और ऊंचा जाए, बच्चे को ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए उन्हें थोड़ी कुर्बानी तो देनी ही है, इसलिए वो बच्चे को रोने पर ज़्यादा ध्यान नहीं दे रहे थे। इसी बीच ब्रेक हो गया विज्ञापन आ रहा था - मां और दादी छोटे बच्चे को बोलना सीखा रहे है - मां बोल बैठा मां , कुछ देर बाद बच्चा मां के बजाए मनी कहता है यह विज्ञापन किसी वित्तीय फर्म का था। दूसरा विज्ञापन एक टूथपेस्ट का था जिसमें बच्चों से टीवी पर आने के लिए फोटो भेजने के लिए कहा जा रहा था। सोचने पर मजबूर हो गया कि बाज़ार ने बचपन को कैद कर लिया। हर चीज बाजार निर्धारित करने लगा है और बच्चों को बाजार चारे के रुप में इस्तेमाल कर रहा है।<br /><br />आफिस जाने के लिए घर से बाहर निकला तो यही नजारा पास के स्कूल में देखने को मिला। जनमाष्टमी पर आयोजित कार्यक्रम में छोटे -छोटे बच्चों को कान्हा राधा बनाकर लाया गया था। हर अभिभावक चाहते थे कि उनका बच्चा ही वह तथाकथित विचित्र परिधान प्रतियोगिता जीते, उन्हे इस बात की जरा भी परवाह नहीं थी कि राधा बनी उनकी चार साल की बिटिया उस परिधान को संभाल भी नहीं पा रही। कोई बच्चा रो रहा है तो किसी द्वारिकाधीश का मुकूट उनकी आंखो पर आ रहा है। और अभिभावक उन्हे डांटकर यशोदा का नंदलाला बने रहने पर मजबूर कर रहे थे। कुल मिलाकर चारों ओर बाजारियत अभिभावको के सर चढ़कर बोल रही है। हालिया फिल्म तारे जमीन पर का तात्पर्य लोगो ने यह लगा लिया है कि हमारे बच्चो इस तेजी से बढ़ते प्रतियोगी समाज में हर हाल में तारे की तरह चमकना होगा।<br /><br />हाल ही में एक रियल्टी शो में जजों ने एक प्रतियोगी बच्चे को इतनी जोर से ड़ांटा कि वह अपना होश ही खो बैठी। हर घर में बच्चे को दौड़ में आगे रहने के लिए डांटा फटकारा जा रहा है। मेरे परिचित का बेटा पढ़ाई लिखाई में औसत से भी नीचे है लेकिन नई कारों और मोबाईल के बारे में उसकी जानकारी गजब की है यह बाजार का असर ही है कि बच्चे अपनी स्वाभाविक ग्रोथ खोते जा रहे है।<br /><span class=""></span><br />गुजरात के नामी शिक्षाविद गिजुभाई वधेका ने खत्म होते इस बचपन को बहुत पहले पहचान कर बाल शिक्षा की अपनी किताब दिवास्वप्न में शांति का खेल खेलते हुए बताया कि ऊं शांति कह देने से ही बच्चे ध्यान करने नहीं बैठ जाते उनके अंदर जो ढेर सारी उर्जा होती है उसे वे खेल कूद कर, आपस में मस्ती कर निकालते है और यही से उनके स्वाभाविक विकास का मार्ग तय होता है।<br /><br />बचपन में कभी भी पापा के द्वारा मारे गए उस झापड़ का बूरा नहीं लगा जो उन्होने हमेशा मेरी जेब में कंचे और चिये भरे रहने की वजह से मारा था। कभी पड़ोसी अंकल की खिड़की गिल्ली से तोड़ी तो उनकी डांट को भरपूर मजा भी उठाया। कंधो पर बस्ते के बोझ उठाता आज का बचपन शायद ये भूल गया कि आखिर मौज-मस्ती किस बला का नाम होता है। वीडियो गेम में आंखे गड़ाते बचपन शायद वो काग़ज की किश्ती और बारिश के पानी का आनंद उठाना जानता ही नहीं है, क्योंकि मां-बाप अपने लाड़ले में संस्कार डालना चाहते हैं और आज के संस्कार कहते हैं कि कंचे खेलता बचपन हल्का बचपन है, इसमें विकास जैसी कोई बात नहीं है, इससे भला तो ये है कि घर में बैठ कर इंटरनेट पर नज़र जमाओ, अपना होमवर्क करो, खाना खाओ और सो जाओ। हंसता बचपन, धूल मिट्टी से सना हुआ बचपन सिर्फ परेशानियों से घिरा हुआ हो गया है, लेकिन मेरी साड़ी से तेरी साड़ी सफेद कैसे ? के इस दौर में मां बाप भूल जाते हैं कि शिखर पर हमेशा एक ही होता है, जिसका ये कदापि मतलब नहीं है कि बाकि सब कुछ बेकार है। बाजार के इस प्रभाव से बाल सरंक्षण आयोग नहीं बच पाया है कुछ दिन पहले आयोग ने तय किया कि कामकाजी बच्चों के काम करने के घंटो की जांच की जाए,इस जांच के लिए आयोग ने रियल्टी शो और टीवी सीरियल मे काम करने वाले सिलीब्रेटी बच्चों को ही चुना, होटलो,ढाबो पटाखा चूड़ी कालीन कारखानों में काम करने वाले बच्चे आयोग को नजर नहीं आए।<br /><br /><span class="">मानिये</span> या नामानिये पर हमारी पीडी का बचपन असल में बचपन था आज तो मां बाप बचपन को खत्म करने के लिए बचपना करने पर ऊतारु है। बचपन में किए गए कई कारनामें आज भी याद आते है चाहे पतंग उड़ाना हो या बेरी तोड्ने के लिए दूर तक जंगल में भटकना या फिर हॉकी के आकार की झाड़ी काटकर उससे हॉकी खेलना। हमेशा कामिक्स में डूबे रहना। जावेद अख्तर की लिखी लाइने"जब मेरे बचपन के दिन थे चांद में परिया रहती थी"आज के बचपन से मेल नहीं खाती पांचवी कक्षा किताब इस बहस से भरी पडी है कि चांद में जीवन की गुंजाईश है या नहीं । बाल कल्पनाओ को बाजार अपनी सुविधा से तोड़ मरोड़ रहा है। आज का बाजार उदय प्रकाश की कहानी अरेबा परेबा के उस बिलौटे की तरह है जो खरगोशो को खाकर एक नई कहानी गढ़ देता है कि खरगोशो को एलियंस ने पत्थर में बदल दिया। और बाल मन के पास बाजार की इस कहानी पर विश्वास करने के अलावा कोई चारा नहीं है।दरअसल आगे बढ़ाने की होड़ में बचपना कहीं पीछे छूट गया है, निदा फाजली जी ने शायद भविष्य देखकर ही ये बात लिखी होगी, बच्चों के नन्हे हाथों को चांद सितारे छूने दो, दो चार किताबे पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जाएंगे।</div>Unknownnoreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-74287980753993377562008-12-14T05:50:00.000-08:002008-12-14T06:23:54.434-08:00आक्रान्ताओं से<em>"मुंबई हमलों के बाद से ही सिस्टम से नाराज़ लोग अपनी हताशा और गुस्सा प्रकट कर रहे हैं। किसलय दिल्ली में सूचना प्रसारण मंत्रालय के फिल्मस डिवीजन में अपनी सेवाऐं दे रहे हैं।किसलय सीधे उनसे बात करने की कोशिश कर रहे हैं जिनके कानों तक कुरान की आयतें नहीं पहुंच पाती। यह कविता उन्होने सात साल पहले संसद में हमले के बाद लिखी थी, आज ये कविता फिर से मौजूं हो गयी है।</em> "<br /><br /><br />तुम जो चाहते हो<br />इस पृथ्वी पर अकेले राज करना !<br />तो फोड़ते क्यों हो बम -<br />कभी- कभी<br />कहीं-कहीं<br />छिपकर पॉँच-एक ?<br />कुछ ऐसा फोड़ो-<br />एक ऐसी मिसाइल<br /> या परमाणु बम,<br />जिससे बच न सके कोई भी,<br />सिवा तुम्हारे!<br />और फिर,<br />चढ़ जाना हिमाद्रि के<br />उत्तुंग शिखर पर ।<br />वहां नोच- नोच कर अपने बाल<br />नोच डालना अपने वस्त्र ;<br />और<br />जोर से चिल्लाना फिर<br />नंगा होकर।Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-56759869039093484972008-12-11T08:40:00.000-08:002008-12-11T09:07:58.689-08:00जज़्बातों की राख में कोई तपिश नहीं होती<span class=""></span><br /><blockquote><p><em></em> </p><p><em>"मुबंई हमलों के बाद जनमानस का गुस्सा एक आंदोलन का रुप लेता जा रहा है। पंकज<br />रामेंदु मुबंई मे रहते है और लहरें चैनल से जुड़े है। उनकी लिखी लाइनों<br />में अक्सर आम आदमी का अक्स नज़र आता है।"</em></p></blockquote><span class=""></span><br /><br />ग़जलसज़दा एक आदत है कोई परस्तिश नहीं<br /><br /> आतंक एक फितरत है, कोई रंजिश नहीं होती ।<br /><br />रगों में बहती है गुलामी ना जाने कब से<br /><br />आजादी एक हसरत है कोई बंदिश नहीं होती।<br /><br />जिनकी चाहत सिर्फ मोहब्बत होती है<br /><br />कांटों से भी उन्हें कोई ख़लिश नहीं होती।<br /><br />फूलों की ज़ड़ों में ये चूना किसने सींचा<br /><br />दिल तोड़ने से बढ़कर कोई साज़िश नहीं होती।<br /><br />बुझते शोलों को हवा देना लाज़मी है 'मानव'<br /><br />जज़्बातों की राख में कोई तपिश नहीं होती ।Unknownnoreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-19287448604799057362008-09-20T12:44:00.000-07:002008-09-20T12:51:49.775-07:00पहचान तलाशते लोग<span class="blsp-spelling-error" id="SPELLING_ERROR_0">दुनियां</span> मेरे आगे.....<br /><br /><br />उस दिन जब सुबह - सुबह गुड्डू का फोन आया , वह काफी दुखी , निराश और गुस्से में था। बचपन का दोस्त होने के कारण उसकी छटपटाहट मुझे साफ समझ में आ रही थी। उसे शांत कर मैने कारण जानना चाहा। दरअसल उसे मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पिछड़ो को दी जाने वाली सुविधाओं के तहत बिजली के स्विच सप्लाई करने का आर्डर लेना था। गुड्डू ने यह धंधा हाल ही में शुरू किया है वह भी बेहद छोटे पैमाने पर। गुड्डू और उसके दो दोस्तों ने इस काम को इस उम्मीद पर शुरु किया कि कुछ कमा खा लेंगे। गुड़्डू का असली नाम हेमकांत वर्मा है असल में वह मध्यप्रदेश में पिछड़ा वर्ग से आता है, अन्य दो लोग जिनके साथ उसने यह छोटा सा व्यापार शुरू किया है वे दोनो सामान्य वर्ग से आते है। बेहद सीमित पूंजी में इन लोगो ने मिलकर यह कारोबार शुरू किया। इसके पीछे सोच यह थी कि गुड्डू पिछडा वर्ग से आता है उसके नाम से लायसेंस लेकर माल की सप्लाई की जा सकती है। इसी प्लानिंग के तहत गुड्डू को अपना जाति प्रमाण पत्र बनवाना था जिसकी जरुरत उसे अपने स्कूल के दिनों में कभी नहीं पड़ी।<br />करीब दस साल तक स्कूल के दिनों में गुड्डू हमारा सबसे अच्छा साथी था और बढिया बल्लेबाज भी, स्कूल के दिनों में गुड्डू ने कभी खुद को पिछड़ा वर्ग का मान कर कोई दावा पेश नहीं किया उसने कभी कोई छात्रवृति नहीं ली ना ही कभी स्कूल से गणवेश या किताबे मुफ्त में ली। बेहद सरल स्वाभाव का गुड्डू बड़ा होते होते खुद को सामान्य मानने भी लगा था.. साथियों की संगत ने उसे उस समय उसका अस्तित्व भुलवा दिया.. लेकिन वक्त के थपेड़ों और दौरे मुफलिसी ने बार बार उसे बताया कि पिछड़ा वर्ग से आता है और सरकार ने उसके लिए कागज़ों मे ही सही मगर कुछ सोच रखा है ।<br />बहरहाल जब हेमकांत सरकार की सोच को सही मानते हुए जाति प्रमाण पत्र बनवाने कलेक्ट्रेट पहुंचा तो वहां मौजूद बाबुओ ने उसे पिछड़ा मानने से साफ मना कर दिया,उनका कहना था कि वर्मा कायस्थ होते है। गुड्डू के पास यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त कागज नहीं थे। और किसी भी तरह के शपथपत्र को बाबू तभी मानते हैं जब यह शपथ खुद लक्ष्मीजी ले। बाबूओ द्वारा बताए गए सीधे रास्ते को गुड्डू अपने सीधेपन के कारण समझ ही नहीं पा रहा था। उसे किसी ने सलाह दी कि यदि दिल्ली से कोई होशंगाबाद फोन कर दे तो उसका काम आसानी से हो जाएगा,हालांकि यह सलाह पूरी तरह गलत नहीं भी नहीं थी क्योंकि मेरे एक बार फोन करने से उसका जाति प्रमाण पत्र बन गया। अस्तित्व के अस्वीकार्य का जो अनुभव गुड्डू ने महसूस किया वो बाबुओं की ताक़त की एक झलक दिखाती है। बाबूओं की यह ताकत वहीं है जिसका अनुभव कुछ दिन पहले मोनिका देवी ने लिया जो कहती रही कि वही असली भारत्तोलक है जो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर सकती है लेकिन बाबूओं ने उसे बताया कि वह डोपिंग की दोषी है, मोनिका ने चीख-चीख कर अपना गला छलनी कर लिया लेकिन आखिरकार नौकरशाही की बात ब्रह्मवाक्य साबित हुई। इसी कॉलम में पिछले लेख में मैनें लिखा था कि किस तरह हमारे गांव में चाचाजी ने आदिवासी के नाम पर हैंडपंप एलॉट करवा कर अपनी बाउंड्री में लगवा लिया था और वह बेचारा आदिवासी आज तक नहीं जान पाया होगा कि जिस हैंडपंप का पानी वह छू भी नहीं सकता, सरकारी कागजों में उसी हैंडपंप से विकास की धारा बह रही है। इसने यह सिद्ध कर दिया है कि कितनी भी विकेन्द्रीकृत व्यवस्था करके अधिकार स्थानीय निकायों को दे दिए जाए किन्तु सरकारी बाबू धरती पर उस भगवान की तरह हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि आप ज़िंदा है या मरे हुए हैं। हाल ही मै बैंक आफ इंडिया ने एक महिला को बर्खास्त किया,वह पिछले बीस सालों से जाली जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी कर रही थी। इस तरह के लाखों मामले होगे लेकिन बाबुओं की भलमनसाहत से यह मामले दबे रह जाते हैं और जाली आदमी का ही जाल फैला रहता है।<br />कितने ही केस ऐसे है जिन पर वर्षो से जांच की धूल चढ़ रही है और फ़र्जियत आराम से नौकरी की चाशनी में तैर रही है। गुड्डू हो या मोनिकादेवी ये सभी उदयप्रकाश की कहानी के मोहनदास है जो खुद को मोहनदास साबित करने के लिए शहडोल से दिल्ली तक आवाज लगाता है लेकिन भ्रष्ट व्यवस्था के आगे उसकी एक नहीं चलती और अंतत: वह अधमरी सी हालत में खुद के मोहनदास ना होने पर ही विश्वास कर लेता है। हरिशंकर परसाई ने अपने एक व्यंग्य में नौकरशाही के बारे में लिखा है कि कैसे एक सरकारी अफसर शार्क को अपने मूंह में जकड़ लेता है जो कुछ देर पहले तक उसके सामने समूद्र में अपनी ताकत का बखान कर रही थी। लोकतांत्रिक व्यवस्था में तो मोहनदास और गुड़्डू का हक मारने का संवैधानिक अधिकार राजनीतिक पार्टियों को मिला हुआ है। किसी एक को मत देने का मतलब होता है आप दूसरे को सत्ता में नहीं देखना चाहते। लेकिन हमारे वोट से अधिकार पाए यही नेता सरेआम पैसा लेकर संसद में हमारे विश्वास को गिरवी रखते है और आम आदमी मोनिका, मोहनदास और गुड्डू की तरह कुछ नहीं कर सकता। कुल मिला कर अपने अस्तित्व को तलाशते ये लोग शायद किसी दिन नौकरशाही के सच को अपना सच मान बैठेगें और यह दोहराते नज़र आएगे कि बाबूजी आप सही कहते हैं.....<br /><br />साभार - जनसत्ता १० सितम्बर 2008Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5631136491286655966.post-67075186336326672642008-07-26T03:59:00.000-07:002008-12-07T08:26:41.977-08:00ये कहां आ गए हम -दुनियां मेरे आगे...........<br /><br />खबरिया चैनलो का नया सूत्र वाक्य है "वी कान्ट वेट फॉर ऐक्सीडेंट,वी हेव टु क्रिएट ऐक्सीडेंट" . पिछले दिनों राजधानी में इसी सूत्र वाक्य पर अमल हुआ हालांकि देश के दूर दराज बैठे लोगो को इसका अहसास भी नहीं हुआ होगा। टीवी पर फुटेज चल रहे थे ,स्लग था- दिल्ली के दरिंदे। एक महिला को मोहल्ले के लोग बेतहाश पीट रहे थे। हर चैनल मानवाधिकारों की दुहाई देता दर्शकों से फोन कॉल,एसएमएस मगा रहा था। घटना दिल्ली के मंडावली इलाके की थी इसलिए उत्सुकता ज्यादा थी यह जानने की, कि महिला की पिटाई के वक्त कैमरे वहां कैसे पहुंच गये,यह सोच ही रहा था कि एक पत्रकार मित्र का फोन आ गया, छूटते ही बोले "विजुअल देखे? आज दिन भर खेलने के लिए हो गया" मैने कहा क्या यह स्टोरी आपने की है तो उनका जवाब था नहीं दूसरे चैनल के स्टिंगर से विजुअल जुगाडे है। पर इसके बाद उन्होने जो बताया वह भयावह था ।<br />घटना की रात एक स्वतंत्र चैनल और एक सातवें आसमान पर रहने वाले चैनल के स्टिंगर वहां मौजूद थे। पीडित महिला अपने उपर बलात्कार करने वाले मकान मालिक के खिलाफ जोर - जोर से कुछ कह रही थी और यह तमाशा काफी देर से चल रहा था लेकिन इससे विजुअल अच्छे नहीं बन पा रहे थे, इसलिए इन दोनो ने ही आसपास के लोगो को उसे मार कर कॉलोनी के बाहर निकालने के लिए उकसाया और वहां मौजूद औरतो से भी यह कह कर<br />पिटवाया कि यह महिला मोहल्ले का माहौल खराब कर रही है। फिर क्या था लोकतंत्र में भीड़ का कोई तंत्र तो होता नहीं । लोगो ने उसे पीटना शुरु कर दिया और जैसे ही यह सब शुरु हुआ वहां मौजूद दोनो तथाकथित पत्रकारों ने अपने कैमरे चालू कर दिए। बस मिल गए बढिया विजुअल।<br />मुझे लगा खबरिया चैनलों की इस भीड़ में क्या किसी चैनल में इतनी हिम्मत है कि इस घटना के असली दरिंदों का चेहरा दुनियॉ को दिखा सके। लोकतंत्र के इस चौथे स्तंम्भ के बेजोड़ तमाशे के बाद हर कोई संतुष्ट था, टीवी वाले अपनी टीआरपी को लेकर खुश थे तो महिला आयोग के सदस्य टीवी पर दिखाई गई अपनी प्रतिक्रिया को देखकर, पुलिस मारपीठ कर रही भीड़ पर केस लगाकर संतुष्ट थी तो आम आदमी"क्या जमाना आ गया है"कहकर ही संतुष्ट था।<br />मेरी ऑखों के सामने डॉली का चेहरा आ गया ,उसकी शादी वाले दिन ही लड़के वालो ने लक्जरी कार की डिमांड कर दी , डॉली के घर में एकाएक तनाव व गुस्से का माहौल हो गया ,डॉली के भाई मेरे पारिवारिक मित्र है इसलिए इस पूरे माहौल में मेरा सीधा हस्तक्षेप हो गया डॉली भी बेहद दुखी थी हलांकि वह आलोक को पहले से नहीं जानती थी लेकिन उसके चेहरे पर एक अंजान डर साफ नजर आ रहा था। हमारे एक अन्य मित्र, जिनका जिक्र में ऊपर कर चुका हूं , ने तुरंत ही कहा कि हमें झुकना नहीं चाहिए , मै अपना कैमरामैन बुलवाता हूं , आने दिजिए उन दहेज के लालचियों को , सारे देश के सामने इन घटिया लोगो को सजा देंगे और इसको टीवी पर लाइव दिखायेंगे। हद तो तब हो गई जब डॉली के कुछ दूर के रिश्तेदार इसके लिए तैयार भी हो गए , भला हो दोनों घर के बुजूर्गों का जिन्होने आपस में बात करकें गलतफहमी दूर कर ली , गलतफहमी इसलिए कह रहा हूं क्योकिं वह<br />डिमांड किराए की लक्जरी कार के लिए थी , जिसमें लड़की को विदा भर किया जाना था । वैसे तो डिमांड किसी भी तरह की गलत होती है लेकिन यहां डिमांड से ज्यादा संवादहीनता थी । बात करने की बजाये सभी ने आक्रमक रुख अपना लिया। यदि उस दिन घर के बुजूर्ग नहीं होते तो पता नहीं क्या हो जाता।शायद यह शादी एक तमाशा बनकर रह जाती ।जानवर तो जानवर का शिकार तब करता है जब उसे भूख लगी होती है लेकिन मीडिया की भूख तो ऐसी है जो हमेशा बाज़ारियत भरी आंतों को कुलमुलाती रहती है। इलेक्ट्रानिक मीडिया के बारे में इस तरह की बातें अक्सर<br />सुनने में आती है लेकिन पिछले कुछ समय से इन्होने अति कर दी है । कुछ महिने पहले की बनारस की घटना याद आ गई जहां अपनी छोटी-छोटी दुकानों को हटाने का विरोध कर रहे विकलांगो को एक चैनल के रिपोर्टर ने यह कहकर आत्मदाह करने पर मजबूर कर दिया कि तुममें से एक आदमी आग लगा ले तो टीवी पर खबर अच्छी चलेगी और सरकार पर तुम्हारी मांगे मानने का दबाव पडेंगा। लुधियाना में एक चैनल के पत्रकार ने प्रदर्शन कर आत्मदाह की धमकी दे रहे व्यक्ति को खुद ही माचिस पकड़ा दी और आग लगाने में पूरा सहयोग किया पुलिस की तत्परता से ही उस व्यक्ति की जान बच सकी। बचपन में हमारे गांव सिहावल में कुछ लोगों ने एक महिला को पत्थर से पीट-पीट कर मार डाला था और हमें बताया गया कि वह डायन थी और बच्चों पर जादू टोना करती थी,यह सुनकर हम सभी बच्चे डर गये और चुपचाप सो गए।<br />आज उस घटना के कई सालों बाद मेरे गांव के लोगो,टीवी चैनलों और ऑतकवादी संगठनों में कोई फर्क नजर नहीं आता,ये सभी आम जनता और अपने से जुडे लोगो को बरगलाते है और उन्हे मौत के मुंह में झोकने से पहले एक पल भी नहीं सोचते.और इस पेशे से जुडे लोग जो असलियत जानते है वे या तो अपना हित साध रहे है या डायन से डरे बच्चों की तरह चुपचाप सो रहे है।<br />ऐसे अनेक उदाहरण भरे पडे है जब टीवी पत्रकारों ने खबरें बेचने के लिए ऐसी हरकतें की है। सड़क पर शव को लेकर चक्काजाम और दूल्हों की पिटाई जैसी अधिकांश खबरें पूर्व निर्धारित होती है।20 -20 मैचों के दौरान भारत के ज्यादातर मैचों से पहले ही लोगो से जश्न मनवा कर विजुअल रख लिए जाते थे और यदि हमारी टीम मैच जीत गई तो तुरंत ही लोगो को जश्न मनाता दिखाकर एक चैनल दूसरे चैनल से आगे हो जाता है। वस्तुत:अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जितना गलत फायदा हम मीडिया से जुड़े लोग उठाते है उसकी बानगी कहीं ओर देखने को नहीं मिलती। बिना इस एहसास के टीवी चैनल इन खबरों को दिखाते है कि यह खबर राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित हो रही है और दूर दराज में बैठे दर्शक पर इसका कितना गलत प्रभाव पडेगा।<br />मंडावली में जिस औरत को पीटा गया,उसके साथ बलात्कार हुआ था। वह न्याय पाने के लिए भटक रही थी। भीड़ ने सरेआम उसे पीटकर, उसके कपड़े फाड़कर उसका दूसरी बार बलात्कार किया और खबरिया चैनलों ने दिनभर इस खबर को चलाकर उसका बार - बार बलात्कार किया। क्या यह बलात्कार कानूनी रुप से मान्य है, क्या<br />यहां आकर मानवाधिकार कुंद हो जाते है ।हर शुक्रवार को हर चैनल में एक मीटिंग होती है जिसे टीआरपी मीटिंग कहा जाता है और उसमें चर्चा होती है - “पिछले हफ्ते हम यहां थे , अब यहां आ गए”<br />साभार - जनसत्ता ...Unknownnoreply@blogger.com2