"मुंबई हमलों के बाद से ही सिस्टम से नाराज़ लोग अपनी हताशा और गुस्सा प्रकट कर रहे हैं। किसलय दिल्ली में सूचना प्रसारण मंत्रालय के फिल्मस डिवीजन में अपनी सेवाऐं दे रहे हैं।किसलय सीधे उनसे बात करने की कोशिश कर रहे हैं जिनके कानों तक कुरान की आयतें नहीं पहुंच पाती। यह कविता उन्होने सात साल पहले संसद में हमले के बाद लिखी थी, आज ये कविता फिर से मौजूं हो गयी है। "
तुम जो चाहते हो
इस पृथ्वी पर अकेले राज करना !
तो फोड़ते क्यों हो बम -
कभी- कभी
कहीं-कहीं
छिपकर पॉँच-एक ?
कुछ ऐसा फोड़ो-
एक ऐसी मिसाइल
या परमाणु बम,
जिससे बच न सके कोई भी,
सिवा तुम्हारे!
और फिर,
चढ़ जाना हिमाद्रि के
उत्तुंग शिखर पर ।
वहां नोच- नोच कर अपने बाल
नोच डालना अपने वस्त्र ;
और
जोर से चिल्लाना फिर
नंगा होकर।
रविवार, 14 दिसंबर 2008
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'अकेला मनुष्य' दुनिया नहीं हो सकता । उसे 'दूसरा' चाहिए ही चाहिए । यह बात सब जानते हैं लेकिन कुछ इसे जानना नहीं चाहते ।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता पढवाने के लिए धन्यवाद ।
bahut baDhiyaa kavitaa preShit kI hai|aaBaar|
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